मुझे ऐसी शराब बता ऐ दोस्त
जिससे मैं नशा-ए-इश्क़ उतार पाऊँ
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खूब ही मुझे पिलाई जा रही है
यूं कश-प-कश लगाई जा रही है
ये कौन चल बसा है अंदर मेरे
किसकी चिता जलाई जा रही है
- सुप्रिया मिश्रा-
1:
कोई जैसा रंग कहे भर दूँ पनों में.
पर ये तेरी आँखों का काजल तो नहीं.
2:
कर कोई बाधा फिर से दिल में उतर जाऊं.
सियासत थोड़ी हूँ जो जुबाँ से मुकर जाऊं.
3:
तेरी इश्क कि बसीयत संभाल रखी है मैंने .
कभी मन करे तो अपने नाम करा लेना.
4:
बेवफा शहर में वफा बेच रहे हो
इश्क के मरीज हो क्या Ankur .
जो मुर्दा शहर को कफ़न बेच रहे हो-
एक शाम हो और ज़ाम हो,
नशा भी महबूब के नाम हो।
बर्फ सोडा और तेरी यादों के साथ,
जिगर में छुपी धधकती एक आग हो।
जब साथ हो और कुछ बात हो,
बातों में छुपी एक राज़ हो।
बंदिशें ना हो दिल के अल्फ़ाज़ों में,
चाहे महखाने में जवानी बदनाम हो।-
पीते थे जिसके साथ में वो साकी बड़ा हसीन था साहब,,,,,
आदत लगा के जालिम ने मयखाना ही बदल लिया....!!!!!!!!-
// A missing straw //
As he sipped that orange juice,
He could feel its bitterness.
Maybe even that juice was
Missing those days when
there were two
Straws
D
R
I
N
K
I
N
G
It instead of one.
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मेरे sare सपने chakna चूर हो chuke हैं,
Mere सारे apne मुझसे दूर हो chuke हैं,
Kl गए थे hum भी mehfill में गम bhulane को,
Ab हम vha के peene वालो में mashoor हो chuke हैं!!
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