तुमसे कहने से डरती हूँ
तुम्हारे साथ होकर भी तुमसे दूर ही रहती हूँ |
चेहरे पर मुस्कान
तो अंदर टूटा हुआ दिल लेकर चलती हूँ |
तुम्हें पता भी हैं
कि मैं रोज़ कितनी मरती हूँ |-
आज मुझे मेरी मौत लिखने का जुनून छाया है
डर से आगे निकल एक दफा उसे पाने का जज्बा आया है
हर रोज जीता था मैं डर डर कर अपने ही ख्यालों में
आज मैंने उस डर को हरा कर मौत को अपनाने का हुनर पाया है
बेख्याल सा था दिलों में हर लम्हें इतंजार था
आ जा मेरी मौत आज मुझे भी तेरा इंतजार था
डर नहीं लगता मुझे अब इस मौत के दरवाजे पर
जीत कर तुझे भी मैं अब बढ़ जाउंगा अपने रास्ते पर
बेवजह के डर से मैं मरता रहा हूँ बार बार
आज उसी डर को मार कर मैं मौत लिखने आ गया हूँ
अपनी ख्वाहिशों को मार कर मैं मौत लिखने आ गया हूँ
मौत के ऊपर से चलकर अब मुझे जाना ही होगा
जीतने के लिए यहां अब कुछ नया कर दिखाना ही होगा
आज मुझे मेरी मौत लिखने का जुनून छाया है
डर से आगे निकल एक दफा उसे पाने का जज्बा आया है-
वो हंसता मुझ पर....
जब मैं कहती हूं
इक डर है...
कि कहीं तुम्हें खो ना दूं
पर उसको क्या पता...
इसी डर में मैं अपना
सुकून तक गंवा बैठी हूं💔-
अब तो हँसने से भी डर लगता है.......
कहीं मेरे गम बुरा न मान जायें!!-
_धडकन_
अपने कल से,
फिर डरने लगा है ``❤"...
के ........ .... ......💗...,
दोबारा खामोश हुई है आज
☆☆☆-
एक डर है खोने का,
मैं अब ख्वाब देखता नहीं।
अंधेरे में खो गया,
उसके बाद का याद नहीं।
मिला था तो गले लगे हैं,
जा रहा तो पूछा नहीं।
तेरा साथ था तो सपने सजे,
दूर हुए तो उम्र ना कटे।
मैं हूं खुद से बेखबर,
मेरा कोई पता ना पूछे।
ये इश्क कितना अजीब है,
ना जीने दे ना मरने दे।
-
तेरा नजरिया मेरे नजरिये से अलग था
शायद तुझे वक़्त गुजारना था
और मुझे जिंदगी 💔-
जीना मरना छोड़ फिर
मंजिल का सहारा था ।
लिखता रहा कागज़ो पर रात भर
फिर अंधेरों की कमाई की ।
उसका दिया दर्द भी
संभाल कर रखा मैंने ।
ज़िद्द पर आ गया
ना दुआ ली न दवाई ली ।
हम तो सीधे थे
मगर अब शराफत याद नहीं ।
हो गए ना बदनाम
खामखां जमाने की बुराई ली ।-