अनजाना कोई शख्स है मुझमें
जो हर रोज ठहरता है मुझमें
रातों को अक्सर तन्हा रोता है
सहर में मुस्कुराता है मुझमें
ख़ामोशी बहुत पसंद है उसको
जाने क्यू शोर करता है मुझमें
जोड़ लेता है सारे रब्त खुद से
पर कितना खुद टूटा है मुझमें
छुप जाता वो गैरो से कहीं
बस मुझे ही दिखता है मुझमें
मैं तो बहुत दूर हो गई खुद से
तो ये कौन है जो रहता है मुझमें-
Zindagi ne yun karvat li ki.....
Aaj apne hi dukh se anjaan hu.....
Na jane kiski talaash mein hu.....
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"अनजान हो तुम अब भी"
अनजान हो तुम अब भी,
जान के या अनजान के,,
खामोश सी खड़ी हो तुम,
इंतजार में जाने किस के,,..-
Aaj phir har gae main kud se kud ki larae mai..
Kamal ki bat h tu har bar jiit jata hai..........
Es larae se anjan ho kar bhi............-
"जब आप अपने बारे में 'अभि' कुछ भी नहीं बताते हैं"
"तब लोग आपके बारे में 'सब कुछ' जानना चाहते हैं"-
भरा रहा शहर...
रौशनी से हमारा...
पर मुझको घेरे रहा...
एक अनजान अंँधियारा...-
उन्होंने कर ऐसा चढ़ाया मोहब्बत का,
जिसको उतारने के लिए हम उन्हीं से गुमशुदा हो गये।
वो अंजान हमारे लिए,
और हम उनके लिए एक राज हो गये।-
"जान " से "अंजान" तक का,
सफ़र तय किया है हमने ,
अपनी मोहब्बत को ,
बर्बाद होते खुद देखा है हमने ,
और लोग कहते हैं ,
हमने दुनियादारी नहीं देखी..!!!!
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हजारों कश्तियां तोड़ रही दम,
दरियाओं के आंगन में,
तुम हो की फरेबो के तूफां में,
साहिल की तलब रखते हो।-