एक फ़क़ीर की तरह..
दर-ब-दर भटकता रहता हूं मैं,
कभी इसके दिल से..
कभी उसके दिल से..
निकलता रहता हूं मैं-
14 SEP 2016 AT 0:09
9 FEB 2021 AT 21:05
हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे।
जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे।
रामघाट पर सुबह गुजारी
प्रेमघाट पर रात कटी
बिना छावनी बिना छपरिया
अपनी हर बरसात कटी
देखे कितने महल दुमहले, उनमें ठहरा तो समझा
कोई घर हो, भीतर से तो हर घर है वीराना रे।-
16 DEC 2017 AT 13:56
रो रहे हैं बैठ कर जो शहर के अमीर हैं
कमाल देखो नाचते दश्त में फ़क़ीर हैं।।-
15 JUN 2021 AT 12:00
यहाँ दान भी अमीरों को मिलता है
बड़ा बेरहम जमाना हैं
फकीरों पर कहाँ कोई रहम करता है
हमें तो हर हाल में रोटी कामना हैं-
8 DEC 2017 AT 21:44
भरी जेबों की अमीरी, मेरी आज ढीली पड़ गई,
जब कासे में खुशियों को, मैंने आबाद होते देखा....-
1 NOV 2018 AT 12:05
सवाब का एक काम आज मैं भी कर आया
सिक्के नहीं थे मेरे पास
एक फ़क़ीर को अपनी 'नज़्म' सुना आया
- साकेत गर्ग 'सागा'-
31 OCT 2020 AT 8:27
सुख में 100 मिले.
दुःख में मिले ना एक..
जो अड़ी भीड़
(दुःख-दर्द)
साथ आये...
वही साथी हैं नेक..😊-