टूटते रिश्ते को बचाने की, कोशिश_ए_हज़ार की
पर उँगलियाँ ख़ुद पर उठने लगी
जहाँ भी गया, बस यही पाया
ख़ुद को बदलो, रिश्ते आपने आप संभाल जाएंगे
लौटते वक्त देखा दीवार पर हमने,
लिखा था ख़ुद को बदलो,जमाना आपने आप बदल जाएगा
बदल दिया है हमने उस शख्स के लिये ख़ुद को
पर उस शख्स ने ना समझी राज_ए_मोहब्बत "
"छोड़ो ज़माने की परवाह करो कुछ ऐसा काम
जिससे याद करें दुनिया_ए_सारी
ख़ुद को बदलो करो कुछ ऐसा काम "-
यक़ीनन आप बदल दोगे दुनिया पर पहले खुद को बदल दो ...
कुछ इस तरह अपने व्यवहार कर लो की दुखियों को भी खुशहाल कर दो ...
बदल रही जब दुनिया तो क्यूँ नहीं बदल सकते हम ...
बदलेंगे खुद को तभी तो पता चलेगा इस दुनिया के गम...
जो लोग समय के साथ चलते है वो खुद में बदलाब करते है ...
जो लोग समय के साथ नहीं चलते वो सिर्फ जीवन का नाश करते है ...
हम भी कुछ इस तरह से अपने आप में बदलाब करेंगे ...
जो लोग कभी रूठ गए थे हमसे वो भी हमपे नाज़ करेंगे ...-
ख़ुद की सोच बदलो
ज़माना सारा खुद बदलता जाएगा,
ख़ुद का नज़रिया बदलो
समाज ख़ुद सुधरता जाएगा,
जाती मतभेद करना छोड़ो
देश ख़ुद आगे बढ़ता जाएगा,
बेटियों को बचाना सीखो
दुनिया का भविष्य सुरक्षित होता जाएगा,
पहले खुद को बदलो
ये संसार ख़ुद स्वर्ग बनता जाएगा।
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पहले खु़द को समझो
दुनिया से क्या शिकवा
खुद से दोस्ती करके देखो
अपनी खामियां देखो
उन्हें सुधार के भी देखो
लोगों को बदलने से पहले
आप जरा खुद को बदल के देखो
लोगों का काम है कहना
उनको अनसुना करके देखो
खुद की खूबियाँ भी तुम देखो
दिल जो कहे वही करके देखो-
माना कि,,
दुनिया मतलबी है, हर तरफ धोखा है..
लेकिन....
आप तो अच्छे बनो,
आपको किसने रोका है...!!-
खुद को बदलो, मंज़िल गर पाना है,
खुद को बताना है, सब को दिखाना है।।
खुद को बदलो, हालातों को गर हराना है,
खुद को हासिल करना है, फिज़ाओ में उड़ जाना है।।
खुद को बदलो, पत्थरों से टकराना है,
खुद से मिलना है, आगे बढ़ते जाना है।।-
समुद्र मंथन सी हलचल उठी है दिल के गर्त में
भेद खुलेंगे राज़ होंगे उजागर परत दर परत में
ख़ुद को बदलो कोई भी बदलाव लाने के पहले
थोड़ा तुम सहो क्यों न थोड़ा सा हम भी सहलें-
✍️सबने कह दिया,खुद को बदलो,
लेकिन आखिर कितना बदलो और कब तक?-
ख़ुद को बदलो बेहतर होगा,
परिवर्तन दुख सहकर होगा.!
चाह अगर है नाम कमाना,
ये दुनिया में रहकर होगा..!
कर्म से प्रेरित सब होते हैं,
सोच गलत बस कहकर होगा!
शीशमहल भी बन सकता है,
सुखद सृजन ये ढहकर होगा!
नाप सकोगे तुम सागर को,
ये धारा में बह कर होगा.!
कालजयी प्रतिमान रचो तुम,
युग युग तक ये सुखकर होगा!
स्वतंत्र जो पत्थर से फूटेगा,
वो निश्चय ही निर्झर होगा.!
सिद्धार्थ मिश्र
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सब ने कहा
मैंने बदल लिया खुद को
पर अब सब कहते हैं
तुम में वो मासूमियत नहीं रही
बदल रहे हैं सब
पर दूसरों का बदलना बर्दाश्त नहीं-