पीछे छूट गयी उस आख़री मुलाकात के बाद,
दिल में तूफान उमड़ते रहे उस रात के बाद,
कई ख़्वाहिशें अधूरी रही तेरे जाने के बाद,
आँखों मे कई रतजगे हैं तेरे नाम के बाद,
चाहत है के ख़त्म करू ये दर्द "एक और बात" के बाद।।-
31 October 🎂🎂
Strong believer of God😇
Banker by profession 😎
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एक ख़्वाहिश जैसे
हो अंधेरा जैसे
जिसमें दिल बहुत डरता हो
गम शिद्दत से बरसता हो
और छुपा ले मुझे वो सीने में..।।
एक ख़्वाहिश जैसे
हो अंधेरा जैसे
जिसके आईने में शमा जलती हो
बुझ-बुझ कर फिर सुलगती हो
और अक्स रह जाये आईने में..।।
पूरी हो चली वो ख़्वाहिश ऐसे
अब दिल पुश्तैनी दुश्मन हो जैसे
जीने और जीते रहने के बीच,
एक ख्वाब हो जैसे
ये दूरी कोई मजबूरी हो जैसे..।।
अब ये दूरी खत्म न होगी
अब ये मजबूरी खत्म न होगी..।।-
इंतिज़ार बाकी है
और तुम आते नहीं
धड़कनों की सरहद पर
क्यूँ कोई मकान बनाते नहीं..।।
रात निगल जाती है चांद
वो मखमली सुबह आती नहीं
बीत जाते है वो दो पल
इंतिज़ार की बाज़ी जाती नहीं..।।
अब बस ये आँखे जम जाती है
दिलपर उनके निशां बाकी नहीं
लगता है ये उम्र सिर्फ मोहलत है
इश्क़ पर ऐतबार अब बाकी नहीं..।।-
वो एक शाम बड़ी अजीब थी
सोचा था कुछ लिखूंगा, लेकिन लिख न पाया..।।
तुमने भी चाहा था उस शाम से
कुछ रंग चुराकर खुद को रंगने का..!!
जैसे बच्चे भरते है रंग उनकी
पहली-पहली पेंटिंग में
जिसमें होती है पहाड़ो के बीच से एक नदी
चमकता हुआ सूरज, उड़ते पंछी, हरे घास के मैदान,
पेड़ और एक घर जिसको
नदी से जोड़ती हुई एक पगडंडी..।।
जिस पर कोशिश की थी चलने की
लेकिन चल न पाया..!!
सच वो एक शाम बड़ी अजीब थी..!!
सोचा था कुछ लिखूंगा, लेकिन लिख न पाया..।।-
लोग कहतें है... अधूरे शब्द और अधूरे वाक्य बहुत कारगर होतें हैं उनमें संभावनाओं और एहसासों के अपार अनंत परागकण होतें हैं..।।
लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता अधूरे शब्द और अधूरे वाक्य अनंत तक अधुरे ही होते उनका कोई साथी नही होता...।। उन्हें बस लुढ़का दिया जाता है दूसरे पाले में पूरा करने के लिए और वहाँ से पुनः लुढ़का दिया जाता है पहले पाले में पूरा करने के लिए मन रखने के लिए ..।।
इसी जद्दोजहद में अधूरे ही रह जाते है अधूरे शब्द और अधूरे वाक्य और कर दी जाती है उनकी जघन्य हत्या जिसका दोषारोपण कर दिया जाता है किसी एक के सर..।।
अधूरे शब्द और अधूरे वाक्य... इन्हें कभी न्याय नहीं मिलता..।।-
किसी से न कहिये दिल की बात
अपनी हसरत अपने साथ
तुम बिन पहले ही सूने थे दिन
अब खामोश हो चुकी है रात
कैसी दोस्ती कैसी यारी कैसी वफ़ा
है सब लब्ज़ों की धोखेबाज़ी की बात
लगता है जैसे सब खेल तो नहीं
किसको शय किसको मात
इल्ज़ाम सारे सर मेरे तस्लीम
कह दे रख अपने दिल पर हाथ
था फ़क़त खयाल या कुछ और मैं
ख़ैर छोड़ो जैसा मौका वैसी बात-
आशा करता हूँ कि इस पत्र को पढ़ते समय तुम भरपूर आलस में आलस से पलंग पर पड़े पड़े आलस तोड़ रहे होंगे..।।
ओ आलास तुम विरले पुरुष हो, तुम्हारे काम करने के सोचने मात्र से तुम्हारी साधना भस्म हो सकती है साथ ही तुम अक्ल से पर्याप्त दूरी बनाए रखना वो मुई तुम्हारी नीव हिला सकती है..।।
"अरामपुराण" अनुसार तुम ही सच्चे योगी हो जिसके अनुसार कम से कम तुम्हें 12 घंटे लगातार सोने की साधना से ही प्रसन्न किया जा सकता है साथ ही लेटे लेटे मोबाइल देखना तुम्हें अत्यंत प्रिय है। तुम्हारी कोई प्रिय जगह निश्चित नही है लेकिन गद्देदार सोफ़ा तुम्हें बहुत लुभाता है और ऐसे में कोई AC चालू कर दे तो उसपर तुम्हारा विशेष स्नेह रहता है..।।
जो तुम्हारी शरण आता है वो तुम्हारा आदि हो जाता है और परम् अरामीजीव कहलाता है जिसका विनाश निश्चित ही होता है..।।
आशा करता हूँ तुम आलस में पड़े रहो सातों स्वर्ग प्राप्त करो और निवेदन करता हूँ कि मुझसे दूर रहो..।।-
हवा में है नमी रात को बारिश के आ जाने से
महक उठीं हैं मुर्दा चट्टानें ताज़गी आ जाने से।।
उदास हो गए कुछ ठेकरदारी चेहरे
फ़कीर के दो वक्त की रोटी खा जाने से।।
आने लगी है रिश्तों में पक्की गठानें
ज़रा सी दौलत-ओ-शोहरत आ जाने से।।
कर्कश होने लगें हैं बहुतों के लहजे
मिजाज़ में मेरे तहज़ीब आ जाने से।।
कुछ दिनों से बदल गयी है शक्ल शहर की
शहर में एक अजनबी के आ जाने से।।
सुनसान सड़क पर तारे गिनते आवारा ही ठीक थे
सारा फ़साद हो गया गली में बत्ती के लग जाने से।।-
उफ्फ..!!
ये मैंने उसे क्या से क्या कर दिया
क्या मैंने उसे तबाह कर दिया..??
मैंने गाँव और वो दरख़्त क्यूँ छोड़ दिया..??
पूरी रचना अनुषीर्षिक में पढ़ें-
माँ नर्मदा के किनारे से
जहाँ से मैं आता हूँ
जहा मैं लौटा था एक अरसे पहले
आज वहाँ वापस जाना चाहता हूँ
इसके सिवा कुछ और सूझ नहीं रहा
द्वंद में दुनिया के खो गया हूँ..।।
रास्ता बुलाता है...
एक अरसे बाद लौटना अच्छा नहीं लगता
सुकूँ से अपनी जात में जाना चाहता हूँ
माँ नर्मदा तुम ही बताओ
वो रास्ता कहाँ है जो मुझे बुलाता है..।।-