हर जोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है
तुमने मांगें ठुकराई हैं, तुमने तोड़ा है हर वादा
छीनी हमसे सस्ती रोटी, तुम छटनी पर आमादा हो
तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है
हर जोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है-
उत्तर प्रदेश में विश्व की पहली हड़ताल है,
जो उल्टा आम जनता को परेशान,
करने के लिए की जा रही है।
दम है तो सरकारी दफ्तरों की लाइट काटो,
आदत हो गई है तुमको फ्री की खाने की। निजीकरण पर डरपोक बिजली विभाग।-
नींद की हड़ताल चल रही है आँखो मे।
सपनो की पड़ताल चल रही है आँखो मे।।-
जैसे ही तुम मेरी सोच में पहला कदम रखती हो ,
वैसे ही बाकी ख्यालों की हड़ताल सी हो जाती है।-
एक मजेदार किस्सा है एक डॉक्टर का, जो मानसिक रोगियों को देखते थे। उनकी मृत्यु हुए शायद दो तीन साल हो चुके हैं। खैर अभी तो उनसे संबंधित एक किस्सा सुनिये। सुनते हैं अगर कोई मरीज आधे या एक घण्टे बाद भी कुछ पूछने....जैसे मेडिसिन दिखाने आ जाये तो वो पूरी consultation fee ले लेते थे। खैर ये उनकी पॉलिसी होगी।
एक दिन आम दिनों की तरह डॉक्टर अपने केबिन में मरीजों को देख रहे थे और बाहर कुछ मरीज अपनी बारी के इंतजार में थे। इतने में ही एक आदमी चिल्लाता हुआ और रिवाल्वर लहराता हुआ आया और उसके पीछे तीन चार लोगों ने और प्रवेश किया। वो सब सीधे डॉक्टर के केबिन में चले गये। बाहर बैठे लोगों ने समझा कि कोई मानसिक रोगी होगा और ज्यादा तवज्जों नहीं दी। मगर वो सब तो अंदर जाकर डॉक्टर को रिवाल्वर की नोक पर लूट कर चले गये। जब सब चले गये तब पता चला कि वो तो लुटेरे थे। शायद डॉक्टर का कोई भुक्तभोगी उनसे खेल खेल गया।
दोनों पक्ष ही दोषी होते हैं....इस तरह से हड़ताल करके मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाले डॉक्टर्स क्या अपने पेशे से ईमानदारी कर रहे हैं। दोषियों को सजा दिलाने के और भी तरीके होते हैं......लेकिन ये तरीका कतई सही नहीं।-
आज बैंक की हड़ताल है
निजीकरण के विरुद्ध
निजीकरण बस, रिश्तों में सुहाता है-
बेमुद्दत हड़ताल पर बैठ कर तेरी यादों ने,
हसीन मेरी जिंदगी को खामखा परेशान कर दिया।
अब शिकायत करूँ भी तो किस्से करूँ,
मरहम लगाने वाला खुद ही दर्द बाँटने जो लगा है....✍️¥-