बात होती है पर इतनी बात नहीं होती
सब कह डालूं, पर मुलाकात नहीं होती
सोचती हूं रातों में किया करूं बातें तुमसे
रात होती है, पर ऐसी रात नहीं होती-
आज फिर अकेला दिखता है सब
शाम आज फिर लग रही उदास है
आज फिर बैठ गई हूं गुमसुम सी
फिर कोई नहीं आज आसपास है
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खुशबू से लबरेज़
आज भी
वो सूखे हुए गुलाब
जिनमें बसी हैं
यादें बेहिसाब
एहसास बेशुमार
वो पुरानी किताबें
किताबों की खुशबुएं
अरसों से हैं
आज भी
मन के बहुत करीब-
कुछ देर तक तुम्हें देखती रही
कुछ देर तक तुम दिखते रहे
कुछ देर बाद सब ओझल हो गया
कुछ देर बाद सब खो गया
कुछ देर तक आँखें छलकती रही
कुछ देर बाद सब सूख गया
कुछ देर बाद याद आया वो लम्हा
कुछ देर बाद सब सो गया-
क्या देखते हो चांद को तुम,मुझे समझकर..
या सोचते हो ये चांद इतना दूर क्यूँ है..
कभी सोचते हो मुझको भी यूंही ज़रा तुम..
या सोचते हो भला ये इश्क- ए- फितूर क्यूँ है..-
मैने अपने कमरे की कर दी हैं
सभी खिड़कियां बंद
शायद किसी का इंतजार ही नहीं अब-
कभी देखी है
सूरज में शीतलता
चन्द्रमा में उष्णता
शायद असंभव सा
प्रतीत होता है ये...
पर मानो,
ये संभव है
जब इश्क होता है-
देखिए उस चांद की छटा
देखिए अधूरा कभी पूरा
चांद की दिल्लगी देखिए
देखिए बादलों की ओट में
कभी साथ सितारा देखिए
देखिए रात के आगोश में
कभी चांद हमारा देखिए-
जिन ज़ख्मों से छिपती रही थी दिन भर मैं
वही रात में सैलाब बन कर उमड़ आए हैं-