कुछ दिनों पहले तक जो मुझे आप आप कहते थे। कईं दफ़ा तो माई-बाप कहते थे। अब वो मुझी को तू तडा़ग कहते है। सीख कर मुझी से खुद को मेरा उस्ताज कहते है। करते थे तारिफे जो कभी मेरी हैसियतो की वो क्या है मेरी औकात कहते हैं। भरा करते थे पानी जो मेरे हुक्के का कभीं आज वो मेरे हुक्के पानी बंद करने की बात कहते हैं।
मक्का नू ना देख छोरी डर जावेगी, अरे जाट की बॉडी देख के मर जावेगी, मूछ पे हाथ - बारने आगगे खाट रहवे, अरे एक खाट पे बाबा एक पे पोता रहवे, बीच में आग ते भरी चिलम का होक्का रहवे, कुर्ता धोत्ती तो आन से और पैरों में जुत्ती सान से, (धामा आशीष)
एक कहावत स् जाट की यारी अर् नौकरी सरकारी किस्मत आला न् मिले्या कर्
जाट कौण स् , जाट वो स् जो शाम न् हुक्का का धुआँ ठाया कर् जाट वो स् जो ठहाके मार क् हँसाया कर जाट वो स् जो यारी खातर जान दे जाया कर् अर् जाट वो स् जो अड़ी पर आक् लठ्ठ भी बजाया कर् दिल के माड़े ना है, चौधर करन् की आदत माड़ी स् शौंक भी घणे माड़े ना, असला् ते तो बस पहचान दिखाणी स्
"कैद हैं देवता वहाँ" हवेलियों में गुज़रा ज़माना दफ़न है! हथेलियों पर लकीरों की उलझन है! समझ से परे-कैसी अज़ब-सी घुटन है! बंद दरीचों में थकी साँसों की टूटन है!
कैद हैं देवता- जर्जरित हवेलियों के मंदिर में! दरख़्तों की जकड़न है जिनकी तक़दीर में! बहलाते हैं दिल को परंपरा की मीठी कसक से! अहसास सराबोर है इतिहास की महक से!
हवेलियों को बाहर के कोलाहल से सरोकार नहीं! खांसती साँसें,सहमी आवाज को क्या कुछ दरकार नहीं?
गूंजती है हवेलियों में हुक्के की गुड़गुड़ाहट! धीमे-धीमे सुनती है ज़िंदगी-रेंगते वक़्त की आहट..! ----राजीव नयन