चेहरे पे चेहरा, नई बात नहीं
अब तो साए भी चेहरे तमाम रखते हैं
कौन कहता है.. इश्क रोग है जवानी का
कि बूढ़े मुंह में नहीं दिल में दांत रखते हैं
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सत्य के आयाम इतने, सत्य विमा से परे
शुध्द गर हो चित्त जब, तब ही कोई इसको धरे
ये दाह करती जब मनुज के राग, मोह और द्वेष का
तब शून्य सा मन हो प्रतिष्ठित और भवसागर तरे ।।
"तीन चौसर'
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धर्म के कुरुक्षेत्र में हर दाँव होता है बड़ा
पा ही जाता है मनुज जो आखिरी तक है लड़ा
और दाँव में भी अर्थ और संकल्प होना चाहिए
कर्म के रणक्षेत्र में बस "कर्म" होना चाहिए ll
"तीन चौसर"
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जब अमावस पूर्ण हो तब चन्द्र भी दिखता नहीं
यूँ ही बिन कारण के मानव, कौड़ी में बिकता नहीं
जब घटा दुर्भाग्य की छाती मनुज के कर्म पर
तब यक्ष, दानव, नाग क्या फिर देव भी टिकता नहीं
"तीन चौसर"
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कोई भी अवरोध पैदा काल में होता नहीं
सब हैं इसके, ये किसी के जाल में होता नहीं
चक्र बनकर धूमता है ये कई नियति लिए
जानते हैं सब इसे पर, ये कहीं होता नहीं
"तीन चौसर"
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सत्य का कन्दुक है भारी जिसमें है अंगार भी
धर्म की है नाव इसमें कर्म की पतवार भी
गूढ़ सा, निरपेक्ष कन्दुक जब भ्रमर बन डोलता
शांत सा तब नाद करता, ध्वंस की हुंकार भी
"तीन चौसर'-
मान या अपमान आखिर मन के ही व्यापार हैं
है जगत मानव का ही जिसमें सभी लाचार हैं
धर्म को लेकर करो सब मोक्ष का गणना बही
और सत्य गर जो मिल सके सबसे बड़ा उपहार है
"तीन चौसर"-
तेज अग्नि सी लपट है,
मान की अपमान की
औऱ अहं के गर्त में
उतरे हुए अभिमान की
सुलगी हुई अग्नि समय की,
रक्त में जब डोलती
तब राख करती ये मनुज के
अर्थ की, सम्मान की..!!
"तीन चौसर"
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वह सत्य की जो ले पताका चल पड़ा है शान से
निष्ठा अपनी सिद्ध करने, तन वचन और प्राण से
सत्य है तब सिद्ध होता और तब पलता कहीं
कर्म की लेकर धरोहर भाग्य तब चलता वहीं ।।
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कौशल देश, अयोध्या राजा, राम सियावर राज करें
हरें वो सबकी पीड़ा निशदिन, सफल सभी का काज करें
दिए जलाएँ जगमग जगमग, चारों ओर रहे उजियारा
रोशन बाहर, रोशन भीतर, हम अपना मन आज करें !!
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रामोत्सव की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं-