JATIN TOMAR   (Unsocial Socialist)
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Unsocial Socialist
Joined 16 April 2020


Unsocial Socialist
Joined 16 April 2020
27 JAN AT 9:33

मार देंगे या मिट जाएंगे।कब तक ?
आखिर कब तक हमारे बच्चे भूख से बिलबिलायेंगें।
और वो अपने कुत्ते भी दूध से नहलाएंगे।
कब तक इनके लगानों को हम चुकाएंगे।
अपने आने वाली नस्लों को हम क्या मुंह दिखाएंगे।।
क्या यही बताओगे कि कैसे हमने सीख लिया था,
उनकी उंगलियों पे नाचना,
उनकी एक चीख में कांपना।
और‌ ये भी बता देना कि 
हमें उनकी घोड़े की हिनहिनाटों सें डर लगता था,
उनके मूंछों के ताव से डर लगता था,
उनकी रायफलों के बटो से डर लगता था,
उनकी जूतियां की नोकों पे हमारा सर लगता था।।
सुना दिया करना अपनी कायरता के करतूते,
कि कैसे कोई तहसीलदार पटवारी सरेआम
नीलाम कर दिया करता था,
तुम्हारी लहलहाती फसलों को कौड़ियों के दाम में।
और फिर तुम वैसे ही खो जाया करते थे,
अपने रोजमर्रा के काम में।
बिना किसी सवाल के बिना किसी हिसाब के।
तुम बस खाली मुठिया भींच के रह जाया करते थे।
और उनकी लाठियां अपनी किस्मत मान के,
सह जाया करते थे।
अभी वक्त है इससे पहले की ये,
हमारीं औरतों की आबरु खींच ले।
भगवान भी तुम्हारे लिए अपनी आंखें मीच ले।
आओ इनके खून से इस धरती को सींच ले।
रोटी खाए या ना खाएं हर रोज यहीं कसम खाएंगे।
मार देंगे या मिट जाएंगे।

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5 NOV 2022 AT 14:16

आंखों में चुभता धुंआ सबको हल्की खांसी है,
धूल जमीं है आसमान में
दिल्ली ऑक्सीजन की प्यासी है।
कभी दिवाली कभी पराली नेता जी ये कहते हैं,
जनता जाए भाड़ में खुद बागों में रहते हैं।
स्मॉग की एक चादर है,
CO2के बादल है,
कूड़े के पहाड़ हैं,
यमुना जी उजाड़ है।
पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ CSR एक scam है,
सबसे बड़ा तो झूठ यही है Polthyene अब ban है।
दरियादिल वालों की थी दिल्ली,
दरिया दिल्ली का सुख गया।
इतने उल्टे काम किए,
नेचर अब हमसे रूठ गया।
सुन लो, सुन लो दिल्ली वालों
अभी वक्त है पेड़ लगा लो।
यमुना जी को तुम बचा लो
खुद जी लिए तुम मर- मर के
कम से कम बच्चौं को बचा लो।
Jatin Tomar

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26 JAN 2021 AT 12:05

दिल्ली में आज जंग है।
किसानों का प्रसंग है।
वैसे आज गणतंत्र है।
पर किसान कहा स्वंतंत्र है।।

फसलों का ना भाव है।
बिजली पानी का अभाव है।
भूखा है अन्नदाता,सीने में घाव है।
बेड़ियों में आजकल फंसे उसके पाव है।।

बैंकों की मार है, किसान कर्जदार है।
गन्ना मिलो पर करोड़ों का उधार है।
सड़को पे जमीदार है।
नींद में चौंकीदार है।।

MSP अब ख़त्म है।
मंडी system बंद है।
सरकार को घमंड है।
दिल्ली में आज जंग है।।

किसान अब खालिस्तानी है।
पिज़्ज़ा से परेशानी है।
खेतों की जो ये नीलामी है।
सब सरकार की मेहरबानी है।

सड़को पे ठंड है।
पुलिस बख्तरबंद है।
रोटी का प्रश्‍न है।
जतिन की कलम है।।
दिल्ली में आज जंग है।।

Jatin Tomar








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17 JUL 2020 AT 11:35

अब हदें भी हो गयी, हिदायतें भी हो गयी।
रूख हवावों ने क्या बदला
हमारी मोहब्बतों से शिकायतें भी हो गयी।

शिकायतें

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16 JUL 2020 AT 12:58

कभी वफाएं लिखती हैं।
कभी दुआऐं लिखती हैं।
हर रोज़ उसका खत आता है।
हमारी सारी खताऐं लिखती हैं।
खताऐं

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16 JUL 2020 AT 10:45

हक़ तो सबको हैं मोहब्बत करने का ।
मेरा चाहे जो अंजाम हो डर लगता है उसको
जमाने की बुरी नज़र लगने का ।।

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13 JUL 2020 AT 18:23

उसे...........हाँ....हाँ............. उसे..........
उसे पढने का शौक था, तो हम भी लिखने लगे।
फिर धीरे-धीरे हम भी मुसायरो में दिखने लगे।
वो हमको छोड़ के चली गयी यारो फिर एक दिन,
क्या करते फिर हम, हम भी रातो को मयखानो में टिकने लगे।

शौक

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7 JUL 2020 AT 11:09

ना अब तुम वो हो, ना वो हम हैं।
रिस्ते भी आजकल, बदलते मौसम हैं।
लोग दिखाते ज़्यादा हैं, प्यार करते कम हैं।
नमक भी वो ही रखते हैं, जो देते जख्म हैं।
कहाँ पहुँचना था, आज कहाँ हम हैं।

मौसम

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1 JUL 2020 AT 11:04

ये तेरा हर रोज मुझसे यूँ रूठना मनाना
घर से बाहर जाऊ तो मेरी फ़िक्र करना
देर हो जाए तो बार-बार मेरा ज़िक्र करना
कभी मेरे हाथों में अपना हाथ रख़ना
कभी मेरे कंधों पे तेरा सर रख़ना
तेरा हर रोज मुझसे गिले शिकवे करना
इसी को तो कहते हैं इश्क़ करना

फ़िक्र

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27 JUN 2020 AT 14:48

सोचता हूँ कभी-कभी मैं इस गुजरते हुए ज़माने पे लिखूँ।
हर-रोज हर-जगह बदलते हुए सच के पैमाने पे लिखूँ।
भूखे-से मरते हैं बच्चे हर रोज यहाँ,फिर क्यूँ ना मैं दूध पीते हुए भगवानो पे लिखूँ।
औरतें पेट की खातिर बेचती है अपनी इज़्ज़्तो को बाज़ारो में,फिर क्यूँ ना मैं जिस्म नौचते हुए हैवानो पे लिखूँ।
सोचता हूँ कभी-कभी मैं इस गुजरते हुए ज़माने पे लिखूँ।

गुजरता जमाना

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