मार देंगे या मिट जाएंगे।कब तक ?
आखिर कब तक हमारे बच्चे भूख से बिलबिलायेंगें।
और वो अपने कुत्ते भी दूध से नहलाएंगे।
कब तक इनके लगानों को हम चुकाएंगे।
अपने आने वाली नस्लों को हम क्या मुंह दिखाएंगे।।
क्या यही बताओगे कि कैसे हमने सीख लिया था,
उनकी उंगलियों पे नाचना,
उनकी एक चीख में कांपना।
और ये भी बता देना कि
हमें उनकी घोड़े की हिनहिनाटों सें डर लगता था,
उनके मूंछों के ताव से डर लगता था,
उनकी रायफलों के बटो से डर लगता था,
उनकी जूतियां की नोकों पे हमारा सर लगता था।।
सुना दिया करना अपनी कायरता के करतूते,
कि कैसे कोई तहसीलदार पटवारी सरेआम
नीलाम कर दिया करता था,
तुम्हारी लहलहाती फसलों को कौड़ियों के दाम में।
और फिर तुम वैसे ही खो जाया करते थे,
अपने रोजमर्रा के काम में।
बिना किसी सवाल के बिना किसी हिसाब के।
तुम बस खाली मुठिया भींच के रह जाया करते थे।
और उनकी लाठियां अपनी किस्मत मान के,
सह जाया करते थे।
अभी वक्त है इससे पहले की ये,
हमारीं औरतों की आबरु खींच ले।
भगवान भी तुम्हारे लिए अपनी आंखें मीच ले।
आओ इनके खून से इस धरती को सींच ले।
रोटी खाए या ना खाएं हर रोज यहीं कसम खाएंगे।
मार देंगे या मिट जाएंगे।
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