Rajiv Nayan   (Raj)
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Joined 4 May 2017


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Joined 4 May 2017
YESTERDAY AT 11:10

जब कभी
मिल जाता है
सुख का
नज़राना कोई
थोड़ा बहुत रखकर
बाँट देता हूँ....
सारे परिचितों में!
जानता हूँ अब
अपने अनुभव से...
सुख लाता है अपने साथ
दुःख का कारवां!
कौन है इस दुनिया में
जो बाँट ले
तुम्हारा दुःख!
कोई मरहम
बना सकता है क्या
हमदर्दियों के
काग़ज़ी फूल से!
बेहतर है
मन ख़ामोश ही रहे
ताकि
किसी भी दर्द से
कोई दर्द कभी
हो नहीं महसूस!
----राजीव नयन

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4 MAY AT 11:33

हँसो ना तुम भी
मेरे संग
एक बेपरवाह हँसी!
हँसते हुए तुम
कितनी ख़ूबसूरत लगती हो!
तुम्हें देखकर
लगता है ऐसा
कि, सचमुच
ख़ूबसूरती का दूसरा नाम
खिलखिलाहट है!
मधुर हँसी के लिए
किसी 'क्लास' की ज़रूरत नहीं
न हीं किसी 'लाफ्टर शो' की...!
बस...
हँसो, तो दिल खोल कर
कि, कोई बोझ न रहे!
रख दो
मेरी हथेली पर
हँसी को कोई फूल!
और...
झरते रहें हरसिंगार
प्रेम के...
हमारे मन की ज़मीं पर!
----राजीव नयन

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1 MAY AT 10:59

यह दुनिया जन्नत हो जाएगी
जब सबको अपना हक़ मिलेगा
उम्मीद की झोली भर जाएगी
मज़दूर का चेहरा बेशक़ खिलेगा!
----राजीव नयन

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27 APR AT 17:06

दर्पण अभी तक चेहरा मेरा दिखाता होगा ज़रूर
कभी तो हमारी याद उसे भी दिलाता होगा ज़रूर

दिल के कोरे क़ागज़ पर तस्वीर उसकी अब भी है
वह भी मिरी तस्वीर से नज़र मिलाता होगा ज़रूर

चढ़ा रखा है मुलम्मा ख़ुशी का हमने अपने चेहरे पे
वो गर्द-ए-हँसी में ज़र्द चेहरा छिपाता होगा ज़रूर


अब डाल ली है हमने भी आदत इंतज़ार करने की
वह भी तो पलकों की पंखुड़ी बिछाता होगा ज़रूर

हर रोज़ एक ख़त लिखता हूँ तसव्वुर की कलम से
उसका पता मालूम नहीं पर मिल जाता होगा ज़रूर
----राजीव नयन

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26 APR AT 9:32

मन ऊब जाए तो आबो-हवा बदल लीजिए
मर्ज़ बढ़ जाए तो दर्द-ए-दवा बदल लीजिए

डूब रहे घर-बार उफनती नदी के कहर से
पानी बहुत चढ़ जाए तो पता बदल लीजिए

बोल उठेंगे पत्थर भी जो प्यार से छू ले कोई
कोई उन्हें गढ़ जाए तो देवता बदल लीजिए

दो दिल समझ रहे राज़-ए-उल्फ़त की ज़ुबाँ
और कोई पढ़ जाए तो लहज़ा बदल लीजिए

नाकाम हुकूमत करती साज़िश कुर्सी के लिए
इल्ज़ाम गले मढ़ जाए तो सत्ता बदल लीजिए
----राजीव नयन

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23 APR AT 22:21

बारहा तुम आ रहे हो दिल-ओ-दिमाग़ में
तसव्वुर करते हुए दिल रहता है फ़राग़ में

पलकें बिछाए बैठे हैं ख़ैर-मक़्दम में आपके
बारिश-ए-गुल होने लगेगी आइए तो बाग़ में

काली घटाओं की तरह बरसना होगा आपको
मुद्दत से हम जल रहे हैं फ़िराक़- ए- आग़ में

तुम चाहो तो बच सकता हूँ तीरगी के जाल से
अब रौशनी कम होने लगी है दिल के चराग़ में

हो गई गायब हँसी जब से भीतर कुछ रीत गया
अब तक भटक रहे हैं उस गुम-शुदा के सुराग़ में
----राजीव नयन

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23 APR AT 16:33

मिरी डूबती साँसों को सहारा मिला है

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23 APR AT 10:35

जाति के चश्मे से देखने वाले लोगों ने अब धर्म का चश्मा पहन लिया है। कुछ दिनों के बाद फ़िर से वही चश्मा धारण कर लेंगे! पहलगाम - हादसा को भारत के गंगा-जमुनी तहज़ीब पर हमले और नफ़रत फैलाने की साज़िश के रूप में देखा जाना चाहिए। इसे बेनक़ाब करने की सख़्त ज़रूरत है। पहलगाम के शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए और किसी भी क़ीमत पर इसका बदला लिया जाना चाहिए। कुछ उच्च स्तरीय साहित्यकार और पत्रकार भी भावना के अतिरेक में चीज़ों को साम्प्रदायिक नज़रिये से देखने लगे हैं जिससे आतंकवाद और सम्प्रदायवाद के पोषकों को ही और ताक़त मिलेगी। मैं अब भी इस बात पर क़ायम हूँ कि भारत का अस्तित्व पूरी बुलंदी के साथ रहा है, आज भी विद्यमान है और भविष्य में भी रहेगा... तो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने धर्मनिरपेक्ष स्वभाव से! चाहे कोई किसी भी धर्म का हो...हरेक भारतीय को आत्ममंथन की निहायत आवश्यकता है।सोशल मीडिया का इस्तेमाल पूरी ज़िम्मेदारी के साथ किये जाने की आवश्यकता है। हम सभी इंसान हैं और यह बात समझने की आवश्यकता है कि इंसानियत का भी कोई मज़हब नहीं होता।
----राजीव नयन

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22 APR AT 21:53

गूँज रही दर्दनाक चीखें पहलगाम की वादियों में
कोई कैसे सो सकेगा मेरा दिल बहुत मर्माहत है

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21 APR AT 21:16

भूल गया है मनुष्य आज, अपनी सारी मौलिकता
बन गया मशीनी मानव, दिखती बाह्य लौकिकता
मन को मिलती संतुष्टि नहीं, तमाम ताम - झाम से
फूहड़ मनोरंजन के दौर में, ख़त्म हो रही बौद्धिकता!
----राजीव नयन

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