मुकम्मल हो जाए इश्क अब वो जमाना ना रहा,
ना रही वो पारो ना ही अब वो देवदास जैसा कोई दीवाना रहा...!-
अजीब सी पहेलियाँ हैं मेरे हाथों की लकीरों में,
लिखा तो है सफ़र मगर मंज़िल का निशान नहीं।-
मेरे हाथों की लकीरों पर इतना गौर करते हो,
पसरा है जब सन्नाटा, क्यों इतना शोर करते हो?-
मुक्कमल हुआ इश्क़ जिनका
मुझे हाथ देखना है उनका ....
वो कौन सि लकीर है जो
मेरे हाथों में नही .....-
अलग अलग सी हैं क्यों
लकीर तुम्हारे हाथ की?
टूट गयी हैं करते करते
इंतजार किसी के साथ की।-
कभी इस तरह भी तुम
मेरा हाथ थाम लेना
या तो लकीरें बदल जाएं
या फिर तकदीरें जुड़ जाएं...-
हाथ दोस्तों का है या फिर दुश्मनों का है?
सुन रहे जो शोर तुम, तुम्हारी धड़कनों का है।-
हर रात मैं ख़ुदा से बस एक ही गुजारिश करता हूँ
कि तेरा नाम मेरे हाथों की लकीरों में लिख दे
जन्मो जनम तक, बस इतनी सी सिफ़ारिश करता हूँ
-
तकदीर का लिखा तो कोई नहीं मिटा सकता...!
जिनकी तकदीर में बिछड़ना ही लिखा हो,
उन्हें तो ख़ुदा भी नहीं मिला सकता....!!-