हाथ की लकीर
-
....... एक पंडित ने मेरे यार को बताया .....
हाथ में नहीं है तेरे दौलत की लकीर मेरे भाया l
उसने चाकू ले हाथ की लकीर को बनाया
फिर डॉक्टर के पास जा दवाई ,पट्टी करवाया l
धन की लकीर तो वह मूर्ख बना नहीं पाया
पर इस चक्कर में ₹500 और भी गवायाl
मत पड़ना इन लकीरों के चक्कर में मेरे यारों
कर मेहनत अपना भाग्य तुम खुद लिख डालो ll-
हाथ की लकीर इसे या भाग्य का खेल बताएँ,
छूटा वो चाट का ठेला, छूटी गुमटी की चाय,
अरसा बीत गया है गंगा घाट पे गाना गाए,
जाने कौन गली में डर है कोरोना मिल जाए।
बीवी की शॉपिंग न होने से रहती है फ्रस्टियाए,
ऑनलाइन क्लासेस बच्चों की है पब-जी का पर्याय,
वर्क फ्रॉम होम के साथ हम रसोई में भी हाथ बटाए,
ये वाली लकीर मिटा दो प्रभु या जल्दी करो उपाय।-
बेरोज़गारी के आलम में सोचा क्यों ना बाबा बन जाया जाए,
परेशान आत्माओं की कमी नहीं है, उन्हें उल्लू बनाया जाए।
लोगों के हाथों की लकीरें देख के उन्हीं से कुछ कमाया जाए।
ग्रहों की चाल में उलझाकर, रत्न और ताबीज़ पहनाया जाए।
चल पड़ी दुकान अब कन्याओं के सहारे आश्रम चलाया जाए,
योग और ध्यान के बहाने चलो दो नंबर का धंधा किया जाए।
जब पड़ी रेड, खुली पोल, जज बोला इन्हें जेल पहुँचाया जाए,
डर के मारे खुल गई आँख, सोचा ये विचार त्याग दिया जाए।-
हाथ की लकीरों पर भरोसा न कर नासमझ
कर्म से बदलाव आता है स्वयं को बना कर्मवीर
बन जाओगे भावी निर्माता खुद अपने जीवन के
दृढ़ विश्वास व कर्म से निकलेगी नई तदवीर
सींच ले इस कर्म भूमि को अपने पुरूषार्थ से
न हो भ्रमित मन में रख हौसलों की जंजीर
हाथ की लकीरों को देख ख़ुद को कोसता है क्यों
हाथ होते नहीं जिनके उनकी भी होती है तकदीर
Naini
-
हाथ की लकीर तू इतराती है, क्योंकि तुझे रचती है तक़दीर,
भूलना मत, भोली-भाली शिद्दत भी साथ रखती है शमशीर।
तू अगर चमची उसकी, तो मेरे पास भी लड़ने को चमचा है,
चौंकना मत,गुरुजी के जिन्न के आगे पानी भरती है ताज़ीर।
तू चिपकी रहती हाथ से, मेरे पास फ़ौज है मनमौजियों की,
भिड़ना मत,वर्ना मिर्च-मसालों से फिर वो करती है तौक़ीर।
नाम ही धुन है रे अपना,ज़ाहिर सी बात है, आती धुनाई भी,
बौराना मत, मैं चलती रब के रास्ते पे,तू खेलती है नख़चीर।-
किसी फ़कीर ने कहा मुझसे
हाथ की है लकीर जुदा सबसे
करोगे कोई काम तुम महान
सो गए हम भी चादर तान
सोचा सब तो है लकीरों में
विश्वास जो था फकीरों में
आज खुद बना हूँ फ़कीर मैं
कैद जो हूँ,आलस की जंजीर में
-
बिना इश्क़ के बनी, वो मैं एक लकीर हूं
गम को सदा ढो़ने वाला मैं एक फ़कीर हूं
सुनता हूं मैं सबकी हमेशा, ऐसा मैं वज़ीर हूं
ख़ुशी ख़ुशी जो हमेशा जीएं वो मैं नज़ीर हूं
अंदर जिसके गर्मी है बहुत,मैं वो एक अंजीर हूं
समझ ना आए हर किसी के,मैं वो टेढ़ी खीर हूं
रंगा नहीं गया जो प्यार से अभी तक, मैं वो एक चीर हूं
तोड़ ना सका जिसे ये जमाना हां मैं वहीं एक जंजीर हूं
-
सब हाथ की लकीरों का खेल है बच्चा आ समझाऊँ
तू हरदम रहता है परेशां आ तुझे एक उपाय बताऊँ
हम भी बाबा की चिकनी चुपड़ी बातों में आ गए
जाने क्या किस्मत में लिखा था ये बाबा हमें भा गए
बाबा ने बताए कई उपाये हुस्न परी के ख़्वाब दिखाए
हम भी मंद मंद मुस्काए इन खयालों से मन गुदगुदाए
बच्चा सब करनी का खेल है ला दक्षिणा में एक हज़ार
घर जा बच्चा मिलेगी अप्सरा जो खोलेगी घर का द्वार
-
ऐ! जिंदगी मैंने तुझे हर हाल में कबूला हैं अब तुझसे कोई गिला नहीं।
गुजरे लम्हों में जिन सफलताओं को चाहा वो कभी मिला नहीं।
कितने किये मस्कत फिर भी हाथों की लकीरों में जो लिखा वो हुआ नहीं।
उम्र गुजार दी तुझे संवारने में जब नया सवेरा हुआ तो कुछ दिखा नहीं।
सबकी तरह मैंने भी ताउम्र मंजिल को चाहा लेकिन रास्ता ही कभी मिला नहीं।
मैंने तो बस तुझसे दो पल की खुशियाँ ही माँगे थी वो भी तुने कभी दिया नहीं।
ऐ!जिंदगी मैं अब पत्थर का इंसान बन गया हूँ अब मुझे कोई दर्द होता नहीं।
दुनिया के इस चहल-पहल में मैंने खुद को कब खो दिया मुझे पता नहीं।
-