आँसुओ की चढ़ा के हल्दी,
रस्मन है रातों में जगना ।।-
बंद कमरे में सोच लेना वो बात
आज भी हल्दी से गहरा है वो दाग
शायद उठा दो चेहरे से अपने तुम नकाब...-
देखो कैसी सजी हैं दीवाली सी ये रातें
बज रहे गीत, मच रही धूम और खुशियों की बातें...!
( पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़े......👇)-
आज वर्षों का अधूरा ख़्वाब पूरा हो गया
देखो तो सनम तेरे नाम का हल्दी मेरे तन मन पर लगा
तू जब तक फूलों की सजी डोली लेकर आयेगा
तेरे नाम की हल्दी से मेरे चेहरे का नूर और निखर जाएगा
अब और इतंजार नहीं होता मुझे और मेरी सखियों को
तू दुल्हा बनकर कब मेरे अंगना बारात लेकर आएगा
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कुछ प्रेम कहानियां ऐसे भी खत्म हुई
की प्रेमिकाओं को मली गई हल्दी में से
मिटाया गया हर कतरा प्रेमी का
उनके घरवालो द्वारा कहकर की
'हल्दी' एक पवित्र खुशाल रस्म हैं।-
हल्दी चन्दन का रंग लगा मुझे भेज रहे तुम करा कर पराया अंगना।
ये बाबुल मेरे करे विदा भरी आंखों से जिस लाडो को पाला नाज से उसे दिखा रहे पराया अंगना।-
तेरे नाम की हल्दी, पिया मैंने लगा ली हैं,
मेंहदी अपने हाथों सजा ली हैं।
तुझे देखने बैचेन हो रही, कब आएगी बारात मेरे आंगन में,
सज- संवर कर तैयार बैठी, डोली के इंतज़ार में।
सात फेरे से बन्ध जाएंगे, प्यार के ढोर से,
हमेशा के लिए एक हो जाएंगे, मांग में सिंदूर भरने से।-
जब हल्दी के दाग पीले से लाल हो जाएँ
समझ लीजिए, रंग उतरने ही वाला है...-