दिल की ख़ता बस इतनी सी थी
इस दिल को किसी से बेइंतहां मोहब्बत हो गई थी
फ़िर तो जैसे वो मेरे ज़िंदगी का हिस्सा बनता चला गया
दिल धीरे धीरे उसके क़रीब आने लगा
चुपके चुपके हम एक दूजे के हों गए
ज़माने की रस्मों रिवाज़ो को तोड़कर जन्मों जन्मों के बन्धन से बंध गए
पर कभी सोचा ना था ये साथ कुछ चंद दिनों का था
किस्मत लिखने वाले ने शायद किस्मत में कुछ और लिखा था
कभी कभी प्यार मोहब्बत की बातें झूठी सी लगने लगती हैं
पर इंसान करे भी तो क्या शायद उसकी भी कुछ मज़बूरी होती हैं
प्यार मोहब्बत में इंसान दिल के हाथों मजबूर हो जाता है
दिल जिससे प्यार करने लगता है उसके बगैर वो इक पल भी रह नहीं पाता है
ये प्यार कि कसक भी कितनी अजीब होती है ना दोस्त
कभी कभी हमें इतनी हंसाती है कि हम खुशियां समेटते समेटते थक जाते हैं
कभी इतनी रुलाती है कि हम टूटकर बिखर जाते हैं
समझ नहीं आती है ये ज़िंदगी कभी कभी
उलझनों में इस क़दर उलझ जाती हैं कि
सुलझाते सुलझाते पूरी ज़िंदगी निकल जाती है
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