जो हर तकलीफ़ में आपके साथ हो,
खुशियों में आपके पास हो,
जब ना हो तब भी उसके होने का एहसास हो।।
ज़िंदगी की हर मुश्किल आसान लगे जिसके साथ,
आपकी हर मुस्कान का भागीदार हो,
जो आपके अपनों को अपना माने,
आपके सपनों को वो अपना सपना माने,
जो खुशियों से भरदे आपका संसार,
बही है सच्चे हमसफ़र का प्यार।।
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कल भी मैं यूँ ही तेरे साथ रहूं, ये जरूरी तो नहीं,
जिंदगी भर का करूँ मैं वादा, ये जरूरी तो नहीं!
रूह में बसी हो तुम ही, धड़कन-ए-दिल की तरह,
पर करूँ मैं तुमसे यह इज़हार, ये जरूरी तो नहीं!
आब-ओ-हवा है एक ही सी, एक सा ही है चमन,
बसंत-ए-कली तुम फूल बनो, ये जरूरी तो नहीं!
मैं तो हूँ हर शय में, चाहे जब तुम मुझे पुकार लो,
पर तुमको मैं करूँ ये तस्लीम, ये जरूरी तो नहीं!
हम है एक ही राह में, एक ही मंज़िल-ए-मुकाम,
हम को हो ये हासिल मंज़िल, ये जरूरी तो नहीं!
हमसाया, हमकदम, हमराज़ हूँ तेरा करो यक़ीन,
ताउम्र मैं तेरा हमसफ़र ही रहूँ, ये जरूरी तो नहीं!
दर्ज हो जाएगी हमारी मोहब्बत किताबों में "राज"
मिसाल बनें कोई हमारी तरह, ये जरूरी तो नहीं! _राज सोनी-
किसको मिला है
मतलब के सब साथी है
दिल पे ज़ख्म लगाते हैं
मिलते ही बिछड़ जाते हैं
पल भर की मोहब्बत है
जिंदगी भर का गम है
कुछ देर का हँसना है
फिर सारी उम्र रोना है
जी भर के खेलते हैं
दिल जैसे खिलौना है
इस ज़ालिम मोहब्बत का
इतना सा फ़साना है
इक आग का दरिया है
और डूब ही जाना है
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दूर हो तुम अगर
तो मोहब्बत का मौसम न आएगा,
अकेले ही तन्हा रहूँगा मैं
कि अब के बरस सावन का मौसम न आएगा..
खुश होऊंगा किसकी ज़ुल्फ़ों से
मेघ की घटाओं को देख कर,
कि तुम न रहोगी अगर
मेरे घर बहार का मौसम न आएगा..-
मुझे समंदर उस पार जाना था
पर मैं बस अपने हालत से लड़ता रह गया,
मुझे सफ़र तय तेरे साथ करना था
पर मैं रास्ते के ठोकरों से जूझता रह गया..
मुझे उम्मीद चांदनी रात की थी
पर मैं बस अंधेरे का दामन थाम कर सोता रह गया,
मुझे खुशियों से घर सजाना था
पर मैं बस ग़मों के ख़त्म होने का इंतजार करता रह गया..
मुझे इक अलग मुक़ाम बनाना था
पर मैं बस दूसरों को मुक़ाम तक पहुंचता देखता रह गया,
मुझे ख़ुद अपना मुक़द्दर लिखना था
पर मैं बस ख़ुदा के लिखे नसीब को कोसता रह गया..-
Chand ho tum tumhe har koi chahta hai
Par khuda ka laakh laakh sukar hai ki...jis chand ko log dekh kar aahe bharte hai vo mere sath...mere pass baithata hai-
तुझको चुना मैंने हमसफ़र
तुझको चुना मैंने रहगुज़र
तुझसे श़ुरू तुझपे ही ख़तम
इतना छोटा सा मेरा ये सफ़र
मेरी हो नहीं सकती जानता हूँ
तेरे लिए हूँ फिर भी मयस्सर
तुझे ही देखा ख़्वाबों में अपने
सिर्फ तू है मेरी रश़्क-ए-कमर
अधूरी ख़्वाहिश को पूरा कर दे
कुछ पल के लिए दिल में ठहर
दुनिया है तू बस "आरिफ़" की
बिन तेरे हूँ बिल्कुल इक सिफ़र
"कोरा कागज़" लिए फ़िरता हूँ
तुझपर लिखे अल्फाज़ हैं ग़ौहर-