न मिलता है वो गीता में न वो क़ुरआन से ख़ुश है,
न आया वो भजन सुनकर न वो अज़ान से ख़ुश है,
उसे काफ़िर भी प्यारा है, उसे मोमिन भी प्यारा है,
वो मालिक दो जहानों का भले इंसान से ख़ुश है।
तेरी पूजा-नमाज़ों की नहीं दरकार कुछ उसको,
उसे दिखता है दिल तेरा, तेरे ईमान से ख़ुश है।
तू बन हाफ़िज़ या हो पंडित कहाँ ये ग़र्ज़ है उसकी,
वो मासूमों का है दिलबर , दिले-नादान से ख़ुश है।
वो चिड़ियों को खिलाता है, वो रिंदों को पिलाता है,
वो सबसे प्यार करता है, वो हर इक जान से ख़ुश है।-
शख्सियत तो मिली हैं, कौन सी हैं मुकाम मेरी
गुमनाम चौराहे पर घुमते, कौन सी इसे पहचान दूं मैं!
इक दफ़ा मुझे मिल भी जाये गर मंजिल मेरी
मिलेगा सूकूऩ उसमें, या उसे वहीं पूर्ण विराम दूं मैं!
तितर-बितर ख्वाबों को समेटे नींद भर सो लूं
उठते ही फिर बिखर जाते, कहो इन्हें कैसे आराम दूं मैं!
हैं सफ़र तुम्हारा लम्बा हर किसी को सलाम दो यहां
थम जाऊ कहीं किसी मोड़ पर, और क्या वहां खुद को विश्राम दूं मैं!
आकस्मिक घटनाओं को कौन रोक सका हैं, यहां
जिंदादिली भी जरूरी हैं, आखिर दिल को कितना दिमाग दूं मैं!
कहीं दुनिया में दर्ज हैं किसी का नाम, तो कहीं किसी के सीने में
लगातार हार को ही यहां एक बार फिर उसे ही जीत का नाम दूं मैं!
-Taste_of_thoughts✍️
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हक़
क्या वास्ता अजनबियों से अब किस तरह की नजदीकियां
गर होता कोई रिश्ता तो मैं तोड़ कर तहस नहस कर देता
यूँ तो दलीलों का उसकी रत्ती भर भी यकीन नहीं मुझे
मैं किस हक़ से उसे अपना जताकर बहस कर लेता-
ना कोई हक़ हैं...
ना ही कोई शक हैं..
ना कोई इजहार हैं..
ना ही कोई इनकार हैं..
अब कुछ इस तरह
उनके और हमारे बीच का प्यार हैं..!!
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तेरी कही हर बात को सच मान लूंगा मैं
तेरे कहने से पहले ही तेरे मन की बात जान लूंगा मैं।
अगर तू देदे तुझ पर हक जताने की इजाज़त मुझे
तो यारा सच में तुझको अपना रब मान लूंगा मैं।-
मुझे बस इश्क़ है
कोई उम्मीद नहीं तुमसे
जिसके साथ जहां रहो
कोई शिकायत नहीं तुमसे
- सचिन यादव-
ग़ुलाम मुझको बना लिया था
तभी तो हक़ भी जमा लिया था
मेरी मोहब्बत अभी भी तन्हा
क़ुबूल नामा जला लिया था
दिलों में भरकर अजीब नफ़रत
सुकून मुँह पर सजा लिया था
अभी भी उसको पसंद हूँ मैं
सभी की ख़ातिर दबा लिया था
कहाँ हुआ हूँ अभी दीवाना
ज़रा सा उससे मज़ा लिया था
निसार 'आरिफ़' हुआ न उसपर
उसी ने मुझको मना लिया था-
अपना हक
कभी कभी अपने हक़ के खातिर
सबसे लड़ जाना भी अच्छा होता है,
और कभी कभी उसी हक के खातिर
कुछ अच्छा कर गुजर जाना भी अच्छा होता है,
आती है जब अक्सर हक़ की बात
तुम लोग न जाने क्यों लड़ने से कतराते है,
जो कतराते हैं अपने हक के लिए लड़ने से
वो अक्सर बनवास ही पा जाते हैं,
और इतिहास गवाह है आज तक
कि जिसने भी अपने हक के लिए कदम उठाया हैं,
महाभारत जैसा युद्ध छिड़ा है हर बार
कि जिसने भी अपने हक को पाना चाहा है,
तो मत रोको तुम खुदकों
अगर हो रहा तुम्हारे साथ अन्याय हो ,
लड़ो अपने उस हक के लिए
जिसके तुम अस्ल भी अधिकाई हो ,
और करो आवाज अपनी बुलंद
ना सहो चुप रहकर अन्याय को ,
और लड़ तो तुम भी सकते हो अपने हक के लिए
बस हौसला अगर तुममें समाहित हो ||
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हक़ नहीं रखती है वो परिवार में कुछ भी कहने का
समझदार सी...आगे बढ़ा रही मां और सास की परंपरा-
किसी पर उतना ही हक़ जताओ,,,
जितना हक़ उसने तुम्हें दे रखा है...
ज्यादा हक़ जताना भी खुद की मूढ़ता को दर्शाता है☺-