Sãçhïïñ Amar   (Samar)
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Joined 13 June 2019


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20 JUL AT 15:48

Time has to be up aur nazm ni utar rahi 🙂

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31 DEC 2022 AT 23:30

Yourquote के कटे कटाये परिंदो को
मेरा आखिरी कलाम 😂



हमसे पहले के हिज़्र में तो उसने दीवान लिख दिये
लेकिन हमारी हिज़्र का कोई मलाल नहीं


मैं जैसा सोच के बैठा था अब का साल
अफसोस ! 'समर' ये बरस भी वो साल नहीं

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12 DEC 2022 AT 11:30

सरे शाम दिल लगाए कोई
करे बातें नज़रे चुराए कोई

रूठना भी अब किसकी खातिर
हो अगर तो मनाये कोई

तुम मेरी मौत का जश्न मनाओ
यकीनन कहीं आँसू बहाये कोई

ये शहर है मुर्दों का शहर
रोज़ मेरी कब्र पर आये कोई 💐

मेरा वजूद मिटाने की बात करते हैं
गुजरू इधर से तो नज़र ना आये कोई

लिखा तो था दाने दाने पर
मगर कमाए कोई खाये कोई

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25 SEP 2022 AT 3:36

नफरत तो मोहब्बत से बड़ा और ताकतवर जज़्बा है |
जब दो मोहब्बत करने वाले कभी अगर जुदा हो जाए और नफरत की दहलीज तक पहुँच जाए तो वो उस जगह, वक़्त और मकाम यहाँ तक कि रंगों और बातों से भी नफरत करना शुरू हो जाते है जो पहले उनके महबूब से जुड़ी होने की वजह से उनके दिल के करीब होती हैं | उस शख्स से जुड़ी सारी यादों को नफरत की लपेट में क्यों डाल लेते हैं ? यादें तो मासूम होती हैं


~परिजाद

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15 SEP 2022 AT 22:36

ख़ामशी

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14 JUL 2022 AT 17:25

जो तिज़ारत ए इश्क़ से बहल जाए
समेट ले बोरिया बिस्तर..निकल जाए

हम भी तो फक़त ऐसे नहीं थे
किसने कहा था उसे बदल जाए

मेरी मुहब्बत वहशी लगती है तुम को
देख लीजिये जो रंगे अदब में ढल जाए

मुझ से भी ज्यादा अज़ीज़ है तुमको
मुश्किल है ये अना संभल जाए

शुबा है के हम उसे भुला दे मगर
यकीं है हम उसके दिल से फिसल जाए

वो जो हो रहा है तिरे दिल में दाखिल
मुश्किल ही है ज्यादा दिन चल जाए

शब ए तन्हाई किसको जी चाहता है समर
कौन है जिसके लिए जी मचल जाए
— % &

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25 OCT 2021 AT 22:15

पूरी रात मैं ये सोचता रहा जाग के
कि क्या तोहफा लाऊँ तिरे जन्मदिन के वास्ते

यूँ तो मेरी बुरी आदतें तुझे कुछ खास पसंद नहीं
तो क्यों न तुझे तोहफा दिया जाये बुरे ऐमाल त्याग के

रब से यही दुआ है कि तुझे हर घड़ी खुशियाँ नसीब हो
कामयाबी तेरे कदम चूमे हर गली हर रास्ते

मैं तो मरते दम तक तिरी मुहब्बत चाहूंगा
तू कभी ना खत्म करना अपने राबते


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29 MAR 2021 AT 20:11

"पुल" - The story of a Bridge


किसी की हिज़्र काट रहे इंसां के दिल में अपने लिए मोहब्बत भरना यानी उसके माज़ी के ग़मों को काट कर मुस्तक़बिल में आने वाली खुशियों के लिए एक पुल 🌉 बनाने जैसा है ....

लोग आयेंगे और हमारे सहारे ये दरिया-ए-हिज़्र पार करेंगे और हम वो जो अपने दिल में किसी और का ग़म समेटे हुएे होंगे और वो है किसी और के जज़्बातों से फुल होगा, अब हमें ये बताने में कैसी शर्म...के हमारी ज़ात का तज़्किरा अब इंसान नहीं पुल होगा...

लेकिन हक़ीक़त ये है के उस सितम-गर के मिराज़-ए-मोहब्बत की दीद हमारी निगाहों को पैहम होती है लेकिन हश्र के दिन अपने क़ल्ब के हज़ार टुकड़े देख ये पता चल ही जाना है की वो दरख़्त किसी बाराँ की प्यास में मुंतज़िर था और हम तो सिर्फ़ राहगीर थे....😊

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3 NOV 2020 AT 17:47

लोगों का हूजूम भर के नाव आया है
लगता है शहर में फिर चुनाव आया है

फिर किसी ने मगरमच्छ के आँसू बहाये हैं
फिर कोई वोट माँगने गाँव आया है

चोर चोर है सब सियासतदार मौसेरे भाई
इनकी वजह से बस्ती में तनाव आया है

दोहरा खेल है सियासत का किसे पता के
कौन सलामत है यहाँ किसने घाव खाया है

महलों की परवरिश क्या जाने धूप क्या है
किन जावियों से झोपड़ी में छाँव आया है

ठंडे लहू से बुझ गईं मशालें इंकलाब की
खौलते लहू में आज फिर ताव आया है

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26 JUL 2020 AT 20:13

इश्क़ का सबब जरूरी नहीं कि कुर्बत हो
जिस तरह जुदाई का सबब नफरत हो

उसका मुझसे दूर जाना लाजमी था
जब इस तरह की मेरी हरकत हो...

फकत मैं ही क्यों उसे चाहूँ इतना बता
खुदा यूँ हो के उसे भी मेरी हसरत हो

तुम्हारे बाद किसी और को चाहेंगे
दिल कोई घर नहीं कि हिजरत हो

मैं उसके चाँद का ख्याल रखूँगा
उसे भी मेरे आसमाँ की अजमत हो

मिरी मोहब्बत का ख्वाब पागल देखे
मेरा ख्वाब है अपनी मोहब्बत हो

वजह मुनासिब ना थी इंकारी की
जिसे सुनकर हर किसी को हैरत हो

वो गया है जिस तरह तुम्हें तोड़ के 'समर'
अब तो हमें उस नाम से भी वहशत हो

-samar

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