।।।।स्त्रीत्व श्रृंगार सिर्फ़ आकर्षित करने के लिए नहीं, यह एक जश्न है स्त्रीत्व में होने का।।।।
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कोई हिजाब से पर्दा
कोई घुंघट कर लेती है
कोई आँखो में सूरमा
कोई गहरा काजल भर लेती है
कोई आज्ञा चक्र पर गोल बिंदी
कोई अर्ध चन्द्र गढ़ लेती है
कोई केशों को त्रिवेणी में
कोई गोल चाँद से जुड़े में तारे भर लेती है
कोई हाथो को मेहंदी
कोई लाल अलते से रंग लेती है
कोई पैरों में पाजेब
कोई नज़र का काला धागा कस लेती है
वो स्त्री ही है
जो कभी दिल से
तो कभी दिल रखने के लिए
श्रृंगार कर लेती है।-
आज, उसकी 'अनुभूति' लिखूँगी,
उसके स्तन के 'दुग्ध' को,
दुग्ध नहीं.... भस्म और विभूति लिखूँगी !
(पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़े...
जो मर्म समझे वही आगे बढ़े,
किसी भी प्रकार की अनुपयुक्त टिप्पणी करके अपनी गरिमा ना गिरायें..!!
🙏🙏🙏)
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एक स्त्री,
जो होती है,एक आधार,
वो भी, सम्पूर्ण जग का,
इसके पश्चात भी,
उसी जग से,
उसे करना होता है,
संघर्ष,
युगों-युगों से,
अपने आत्मसम्मान,
चरित्र,
और अपने,
स्त्रीत्व के लिये ...।।-
फूलों सी कोमल पर शक्ति का नाम है नारी,
ईश्वर का दिया सबसे बड़ा वरदान है नारी।
नारी से ही है जीवन का आधार,
हमारे जीवन का सबसे प्यारा उपहार।
पर क्यूं दिल बहलाने का सामान समझ लेते हो तुम,
क्यूं भूल जाते हो इन्हीं के गोद में पल कर बड़े हुए हो।
कभी गर्भ में खामोश कर देता है जमाना,
तो कभी परंपरावादी जंजीरों में बांध देता है।
आखिर कब तक दोगे सजा,
नारी हूं कोई गुनाह तो नहीं।।-
इतिहास साक्षी है इस बात का कि
स्त्रियां मौन ही रहीं हैं अंत तक,
परंतु जब ललकारा गया
उनके स्त्री स्वरूप को
तब केवल विनाश हुआ है
समाज के दर्प का...!
(कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें)-
"स्त्रियों" ने "प्रेम" में धैर्य चुना "अभि"
और "पुरुष" ने चुना "उतावलापन"।
प्रेम में स्त्रियों के हिस्से मद्धम-मद्धम आँच में जलना
आया और "पुरुषों" के हिस्से में आया "दीवानापन"।-
प्रेम में आकंठ डूबी स्त्री, वैचारिक मतभेद की पराकाष्ठा में भी अपने पुरुष का मानमर्दन नहीं करती.
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स्त्री पुरुष के 24 घण्टो में से कुछ क्षण चाहती है जिसमें वह विषयासक्त हो बाकी समय वह उसमें महान पुरुषत्व खोजती है।
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