Payal   (पाયଲ)
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Joined 6 May 2018


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17 JUN 2019 AT 11:05

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12 JUN 2019 AT 12:15

कोई हिजाब से पर्दा
कोई घुंघट कर लेती है

कोई आँखो में सूरमा
कोई गहरा काजल भर लेती है

कोई आज्ञा चक्र पर गोल बिंदी
कोई अर्ध चन्द्र गढ़ लेती है

कोई केशों को त्रिवेणी में
कोई गोल चाँद से जुड़े में तारे भर लेती है

कोई हाथो को मेहंदी
कोई लाल अलते से रंग लेती है

कोई पैरों में पाजेब
कोई नज़र का काला धागा कस लेती है

वो स्त्री ही है
जो कभी दिल से
तो कभी दिल रखने के लिए
श्रृंगार कर लेती है।

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8 JUN 2019 AT 12:32

दीवार पर टंकी
वो बड़ी-सी तस्वीर
है टिकी जिस
छोटी-सी कील के सहारे
सिखाती है मुझे
की ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाने
कँधों का बड़ा होना ज़रूरी नहीं

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1 MAY 2019 AT 12:41

बाग़ान का सबसे ख़ूबसूरत फूल
ना चढ़ाया
मैंने देवताओं को
ना सजाया
अपनी काली घटाओं पर
ना भेंट किया
किसी परवाने को
बस सलीक़े से रख दिया इसे
एक अधूरी उपन्यास के
पन्नों के बीचों -बीच
ताकि
हो जाए इसकी आभा
सदा के लिए अमर
उन पन्नों में
जिन्होंने बड़े प्रेम से सहेजे रखा है
अपने अन्दर हर शब्द की विशिष्टता को
की वर्षों बाद भी
गर टटोला जाए इन पन्नों को
तब भी शब्दों के कण कण से आए वो महक
जो साक्षी हो इसके प्रेम और समर्पण की...

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29 MAR 2019 AT 23:35

आईने के हाशिए पर लगी बिंदी
बाबा के आँगन में हथेलियों की छाप
प्रियतम की कमीज़ पर लंबा-सा बाल
.
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क्योंकि
स्त्रियाँ जिनसे प्रेम करती हैं
वहाँ अपनी निशानी ज़रूर छोड़ती हैं

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30 JAN 2019 AT 13:03

अब नहीं देते वे
हमारे सपनों के दरवाज़े पर दस्तक
कहीं वे हक़ीक़त में आने की फ़िराक़ में तो नहीं

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12 JAN 2019 AT 23:52

Get up and strive
Just make sure
That your zeal
Doesn't die

To bring a change
Don't change yourself
Just be the one
The world would never forget

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2 JAN 2019 AT 20:48

कुंडली का मंगल दोष
हमें कभी ना समझ आया
पक्के निव वाले प्यार को भी
इसने कच्चे मकान की तरह गिराया

कभी पीपल से
तो कभी
नीम से ब्याह करवाया
हवन पूजा पाठ करा बस
इसने पंडितों का झोला भरवाया

कहते देवज्ञ रूपी पुरोहित
मंगल को मंगल ही काटे
साथ मिले जो इक दूजे का
होते जीवन के दुःख,दर्द आधे

नाम से ही,है जो मंगल
जाने क्यों समाज उसे
अमंगल सिद्ध कराए
गुण और कुंडलियां मिलाते मिलाते
क्यों दिल मिलाना ये भूल जाए

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28 DEC 2018 AT 20:37

प्रेम की दास्तां

( अनुशीर्षक में पढ़े )






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27 DEC 2018 AT 9:57

नज़्मों में मेरी
अक्स तेरा ढूँढ़ती हूँ
बस इसलिए मैं लिखती हूँ

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