तुमको पाकर भी, हाथ खाली रह गये,
तुम्हारे हाथ,मेरे हाथ में आ ना सके
और दूर तुमसे,हम जा ना सके ।
कैसी कशिश है,
हाल-ए-दिल तुमको बता ना सके
नज़र में तो रखा तुम्हें,
पर नज़र कभी मिला ना सके ।।
यूं तो सच्ची मोहब्बत कभी फासले नहीं देखती ।
पर अगर सिर्फ फासला ही रह जायें दरमियान,
तो शिकायतें भी नहीं बचती ।
इस मोड़ पर आना शायद, ज़रूरी था ।
तुमहारा एहसास होना भी ,जरूरी था
वैसे तो दर्द -ए-मोहब्बत तुमसे बयां कर चुके,
पर कमबख्त दूर तुमसे, हम जा ना सके ।।
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ज्यादा कुछ नहीं, पर जो मेरे मन को सन्तुष्टी दे, बस उतना ही लिख पाती हूँ।
आशा... read more
तुम पर कुछ लिखने की सोचूं ,
तो लफ्ज़ ही नहीं मिलते
ऐसे एहसास सा भरा सागर हो तुम ।
जिसमें खो जाती हूं मैं हर बार
खुद को कहीं छोड़ आती हूं हर बार
जैसे 'मैं' , 'मैं ' नहीं
'तुम' बनती जा रही हूं
अपने इकरार को तुमसे
बयां करती जा रही हूं
ऐसे मेरी बेनाम सी मोहब्बत का
एक नाम हो तुम
मेरा अस्तित्व,मेरी
पहचान हो तुम ।।
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तुम प्रेम बनना,
मैं तुम्हारी व्याख्या बन जाऊंगी
तुम वचन बनना,
मैं तुम्हारी निष्ठा बन जाऊंगी
तुम यथार्थ बनना,
मैं तुम्हारी सौम्यता बन जाऊंगी
हर जनम,हर युग में,
मैं वही इतिहास दोहराऊंगी
तुम मेरे कृष्णा,
और,
मैं तुम्हारी राधा कहलाऊंगी-
बस्ते में बंद हो गए है,
कुछ सपने, कुछ ख्वाइशे
शायद कुछ पल के लिए,
या, ये कहूं कि,
उस पल तक,
जहां तक मेरी इंतजार की सीमा हो,
पर, मैं इंतजार करूंगी,
उस बारिश के बरसने का
जिसकी बरसाने की साजिश,
खुद "खुदा" भी कर रहा है-
हर रास्ते को मंजिल मिल जाये,ये ज़रूरी तो नहीं,
ऐसे ही मेरे अधूरे इश्क़ का, पूरा सच हो तुम!-
मैं उड़ना चाहती हूं
उस आसमां में जहां ,किसी ने भी उड़ान ना भरी हो,
हां! उतनी ऊंची उड़ान,
जहां पहुंच कर मैं पूरी दुनिया को दिखा सकूगी
कि,मैं देखो कितनी काबिल हूं
देखो मैंने जो चाहा,मैंने पा लिया
मैंने जो देखा सपना,
वो मैंने आज पूरा किया।
पर....पर कहीं मैं भटक ना जाऊं
ऊपर उड़ने की चाहत में,
ज़मीं पर ना गिर पड़ूं
शायद !डरी हूं मैं,
खुद से ही लाखों बार
हारी हूं मैं।
पर एक दिन,
सबको दिखा दूंगी
कि सपनों की कोई उम्र नहीं होती
बस हर लौ को रौशनी बनने में
थोड़ा वक्त लग जाता है. .....।
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इकरार इस कदर है कि, इज़हार की जरूरत नहीं,
कुछ मोहब्बतो की खामोशी में आवाज़ की जरूरत ही नहीं होती .......-
मैं जमाने से हारी कान्हा! मुझे एक छोटी सी खुशी दिला दे,
तू भूल जा सारी गलतियां मेरी, मुझे एक बार बस वृन्दावन बुला ले ।।
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कुछ दिये,
जो मैने जलाये है,
तुम्हारे प्रेम में पड़े विचारों से,
जिसका प्रकाश,
दूर -दूर तक
मेरे मन के कोने मे विद्यमान है,
जिसकी लौ को
हवा भी डगमगा ना पायेगी,
इसलिए नहीं कि,
ये विचारो के दिये हैं,
इसलिए कि,
मैने उसे जलाया है ,
अपने प्रेम के संकल्प से,
जिसे हवा तो क्या,
बारिश भी ,
बुझा ना पायेगी।-
अब ये शहर, शहर नहीं लगता,
ये ज़मीन, ये आसमाँ, अब अपना नहीं लगता ।
ना ही अच्छी लगती है, ये भीगी भीगी सड़के,
और ना ही वो पेड़ की छाँव,
जहाँ से मैं तुम्हें देखती थी ।
तब वो हवा भी कितनी अपनी सी थी ,
जो उड़ाती थी, मेरी जुल्फें,
और मैं तुम्हें देखकर उसे सँवारती थी ।
तब वो पायल भी मन भाती थी ,
जो मैं,तुम्हारे लिये पहनती थी ।
वो काज़ल, जो तुम्हे अच्छा लगने पर लगाती थी,
वो बिंदिया जो, तुम्हारे लिये अपने माथे पर सजाती थी ।
कितनी वीरान हो गयी है, अब ये जगह,
पर कैसे कहूँ तुमसे! कि
अब मन नहीं लगता,
तुम्हारा होना, मेरे लिये कितना मायने रखता ।
काश आ जाते तुम!
वापस से मेरी नजरों में
तो कैद कर लेती तुम्हें ,ताउम्र भर के लिए,
ताकि देखूँ तुम्हें हमेशा अपनी नजरो से ।।-