तपती आँच में ख्वाहिशें नहीं जला करती,
सहज स्त्रियाँ यूँही जटिल नहीं दिखा करती,
बाँध लेती है आस की डोर से खुद को
बंद मुट्ठी से आसमान नहीं लिखा करती,
ढूंँढ लेती है रास्ता वो बिखरे से रिश्तों में
खिंचकर टूट जाए, ऐसा नहीं राब्ता रखती,
बिखर जाती है अक्सर ही काँच की तरह
'दीप' वो पत्थरों सा दिल नहीं रखा करती,
ईश्वर की ही नेमतें हैं ये आसमां-औ-जमी ं
सृष्टि स्त्री से बेहतरीन और नहीं रचा करती !-
नदी और स्त्री....
किसी नदी को निर्झर बन
ऊंचाई से गिरते कभी भी
गौर से देखा है तुमने???
-
एक स्त्री जब प्रेम लिखती है
कई शंकित निगाहें उसका पीछा करती हैं।-
आत्मसम्मान की
बात करती स्त्रियाँ
सुशील नहीं होतीं..
वे विद्रोही होती हैं..
बिगड़ैल होती हैं...
(अनुशीर्षक में पढ़ें)-
'क्षणिका'
लचक उँगलियों की
धीरे-धीरे ख़त्म होती हुई
एक पीड़ा का आकार लेती है
प्रेम के अभाव में स्त्रियॉं
जीते हुए भी,
जीने का एहसास भूल जाती हैं!-
स्त्री के आँसू जैसे कि मुर्दे को संरक्षित करने वाला द्रव।
उत्पीड़ित स्त्रियाँ रख लेती हैं यूँ सुरक्षित रिश्तों के शव।।-
कहाँ चाह हैं उसे परिंदों सा उड़ने की ..
चुनर में जिसने आसमां समेट रखा हो-
"विधवा, तलाकशुदा ,
परित्यक्ता और
बिन ब्याही अधेड़ स्त्रियाँ...
नहीं आती हैं
प्रेम की परिधि में,
वे आती हैं
सिर्फ़ चरित्र के दायरे में..।"-
स्त्रियाँ अभिनय में कुशल होती हैं,
एकदम परफेक्ट...........
बहुत बार झूठे होते हैं उनके आँसू,
मगर कहीं बहुत ज्यादा बार,
झूठी होती है........
उनकी हँसी........!!-
कहीं अंधेरों में
फँसने से पूर्व
स्त्रियों को साथ रखें,
स्त्रियाँ निरर्थक
आस्थाओं को समेटने
के लिए
सबसे उपयुक्त तर्क
देती हैं!-