बात मन में न दबा रखो
बात अगर सही तो
कहने में संकोच न करो
अच्छा बुरा तो व्यक्ति पर निर्भर
तुम सच को सच ही कहो-
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वफ़ादारी सभी को रास नहीं आती
किसी को करनी नहीं आती
किसी को स्वीकारनी नहीं आती
जो रहे वफ़ादार उनको वफ़ादारी ना मिली
लुटा कर सब कुछ किसी की वफ़ा ना मिली-
इज़हार हमेशा आसान नहीं रहा
कभी हमारा कभी उसका मन नहीं रहा
चाहा कभी सुनना चाहा कभी कहना
कशमकश में इज़हार मुकम्मल नहीं रहा-
बेख्याली में उसका ख्याल रहता है
ये दिल जिसका तलबगार रहता है
रात-दिन वही खयालों में आता
इश्क़ जिससे बेशुमार रहता है-
दिल दिमाग की कही न अगर किसी से
लगा बुरा कहा किसी का
कह दो झट से मुक्त रहो झंझट से
क्यूं लेना बोझ औरों के लिए मन पर
कोई नहीं किसी का वक़्त पर
रहो साथ उनके जो साथ तुम्हारे
बाकि को नमस्ते करो अभी से
नहीं तो फिर बिगड़ी बात और बिगड़ेगी
पछताना होगा सिर पकड़ के-
तुझे बताने की ज़रूरत नहीं
जो है तेरे लिए एहसास मेरे
तुझे समझाने की ज़रूरत नहीं
जान कर भी अनजान रहे तू तो
तेरे स्वीकार की भी ज़रूरत नहीं-
उड़ते बादल
तैरती हवा
और
उन्हीं संग कभी बहता
कभी भीगता
चंचल मन
एक पल शांत
एक पल व्यग्र
नहीं पता क्या चाहता मन
कभी आकुल
कभी तृप्त
नहीं पता कैसा है
मेरे मन का मन...-
अतीत से सीखा जा सकता है
कहां रहे सही कहां थे ग़लत
आकलन कर सभी पहलुओं का
वर्तमान संयमित किया जा सकता है
अतीत तो अतीत बन चुका लेकिन
भविष्य को अनुकूल किया जा सकता है-