पिता कहते थे
जीवन से जुड़ा पहला आदमी माँ की तरह सुन्दर होता है !-
मैं गुस्सैल गर्मी हूँ दहकती धूप सा
तुम छाया सा सुकून देती जैसे कोई आइसक्रीम प्रिये
मैं आवारा बादल घूमता फिरता एक पागल सा
तुम ठहराव हो मुस्कान भरी जैसे विचलित मन में शांति प्रिये
मैं पतझड़ में बिछड़ा कोई दर्द भरा एक टूटा फूल सा
तुम भी टूट कर चाहने वाली जैसे सुंदर प्यारी एक तितली प्रिये
मैं दाने दाने को लालहित रहता मांगता भीख भिखारी सा
तुम अन्नपूर्णा प्रेम सी खिलाने वाली जैसे कोई हो दया की देवी प्रिये
मैं "अमर" अबोध हूँ बड़ा हो कर भी एक छोटा बालक सा
तुम मुस्करा कर सबको माफ करती तुम तो दिल से बड़ी भोली प्रिये
मैं अस्तित्वहीन जीवन व्यतीत करता मानो उस वैरागी सा
तुम आस हो मिलन की जैसे कान्हा के बंसी सी मधुर धुन प्रिये-
तुमने एक बार भी नहीं सोचा कितनी,
मेहनत लगती है पेडो को बडाने के लिए।
सीधे काट दिये इन मासुम से बच्चो को,
बस अपने मकानो को सुंदर बनाने के लिए।-
"तुम्हारी सुन्दरता को देख मैं निःशब्द हूँ।"
"तुम्हारी निःशब्दता ही तुम्हें सुंदर बनाती है।"-
इतना सुंदर है वो, कि कोई भी देखें...
तो बस देखता रह जाए..!
इतना HANDSOME है वो, कि किसी का भी दिल..
चुरा ले जाए...!!-
उंस की ये जो बूंदे सनम तेरे इस मासूम चेहरे पर आकर के ठहर जाती हैं।
कमबख्त ये जो तेरी सिद्दत की हद वाली सादगी हैं न हर बार कहर ढाती हैं।-
काश तुम्हारे शब्दों सा सुंदर तुम्हारा चरित्र भी होता
न मैं सिर्फ तुम्हें पढ़ता, तुम्हारा मित्र भी होता-
दुनिया सुंदर दिखती है
आपकी आँखों से
दुनिया सुंदर लगती है
आपकी बातों से
बदल लिया है नजरिया
अब मैंने भी अपना
अब डर नहीं लगता
मुझे अँधेरी रातों से-
ऐसे चर्चे सुने है हमने
उस चाँद से मुखड़े का.....
कि नूर इतना है
उस नूरानी चेहरे का........
अरे ! मोम चीज ही क्या है
आईने तक के पिघलने का........।
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