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अल्लाह रखा ख़ाँ, अली अकबर ख़ाँ, जॉर्ज हैरिसन, रविशंकर, बिस्मिल्लाह ख़ाँ
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सा करे अग्नि को नमन, ऋषभ करे ब्रम्ह समन
गंधार से सरस्वती ध्यान, मध्यम से शिव प्रणाम
पंचम पर लक्ष्मी विराजे, धैवत लंबोदर को साजे
निषाद् करे नित्य सवेरे, दिवा दिनकर की पुकार
सितार की तार पर सजे स्वरों की झंकार
सात स्वरों का होता संगम, होता जनम सात का फेरा
सात सात ये साथ साथ हैं, बना जीवन चक्र का घेरा
आत्म दर्शन हो जाए, हो इन सात स्वरों से सरोकार
सितार की तार पर सजे स्वरों की झंकार
लयबद्ध हैं चाॅंद सितारे, लयबद्ध ये सृष्टि सारी
मानव उत्पति से साथ रही, स्वरों की है गरिमा भारी
छिपा हुआ इन्हीं सात स्वरों में, है जीवन का सार
सितार की तार पर सजे स्वरों की झंकार-
उनकी उंगलियों को सङ्गीत से प्रेम है।
बिना तार के भी सितार बज रहा है।-
सितार के सारे तार एक साथ छेड़ दो
दरअसल वही ज़िन्दगी की ज़ुबाँ भी है-
उंगलियों ने पहन रखी हों मिज़राब
कस ली हों तारें सितार की
बैठा हो मुतरीब
हाथों में लिए रबाब
पर मना हो तार छेड़ना
दिल रोता है ऐसे में तब
बन्दूकें उठा ली हों हाथों में
घोड़े पर हों उंगलियां
सीने पर आ पहुंचे हों दुश्मन
कमर कस ली हों सिपाहियों ने
पर मना हो चलानी गोलियां
दिल रोता है ऐसे में तब-
वो टूटा तो था किसी की बाँहो में आने को,
न मिली जब बाँहें तो रुसवा हो गया,
न रहा वो फिर अपने आप का ही,
फलक से बिछड़ा और तन्हा हो गया।
तन्हा होकर भी हँसता गया,
बिखरा और संभलता गया,
टूटा और खुद को पाया,
सब भूलता गया और चलता गया।
उमंग~ निहारिका
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क्यो देती हो मेरे
दिल पर दस्तक।
तुम्हारी दस्तक से
विकल हो जाता हूं।
अनजाने में ही तुम
छेड़ देती हो सितार।
फिर सहेजना होता
मुझ पर मुशिकल।
क्यो देती हो मेरे
दिल पर दस्तक।
खुद को संभालना
होता दुश्वार मुझे।
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मैं कहीं भी रहूँ तू कहीं भी रहे
ख़ुदा है हमारा इश्क अमर रहे
जमीं-आसमान से कभी न मिले
फिर भी बिन इक-दूजे वे न हिले
दोनों चाहें इश्क तो वो अधूरा कैसे
इकतरफा में ही पीठ फेरी हो जैसे-