मुझ तक , आज भी पहुँचती है
तेरी सब सदाएँ ।
कैसे कह दूँ कि
रिश्ता नहीं है अब ...।-
मेरे ग़म की गहराई में तुम्हारी फ़क़त सदाएं हैं आती
काश!
बर्बाद फसलों के काम बारिशों की दुआएं आ जाती..-
तुम जो गए
दरो-दीवार सूने लगते हैं,
इंतजार रहता है.....
सदाएं भी नहीं आती !
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ज़माने ने दी सदाएं,मैं जब भी गुज़री गुज़ारगाह-ए-मोहब्बत से...
न लड़खड़ाए कभी कदम मेरे, कोई देखे भले ही निग़ाह- ए-हिकारत से...-
तेरी अदाएं ,
तेरी सदाएं ,
तेरी खूबसूरती,
तेरी नज़ाकत,
...... मुझे हमेशा कायल कर देती है ।।-
खुद ही रोना होता है, गम के अॉसू पीकर,खुद हीे,मुसकूराना होता है यही वसूल है उल्फत के जहाँ का, मुहब्बत सबके हिस्से में कहॉ आता है।
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ये सदाएं जो पहुंचती है न तुम तक...
जिस रोज़ न सुनाई दे, समझ लो...
जहाँ से रुख़सती का पैग़ाम है|-
सदाएं आयें जब उनके दर से,
इस दिल में जाने, क्या हुआ है।
फ़िजाऐ मह़की है उनके दम से,
इन कदमों को, फिर क्या हुआ है।
हवा के रूख भी, ये कहते फिरते,
जुस्तजू का, मजा जुदा है।
आशिकी में जब भी, दिल मचले,
इश्क को ये, क्या हुआ है ।
फ़िजाऐ मह़की है उनके दम से।
इन कदमों को, फिर क्या हुआ है।
घटाओं ने जाना, दिल भी ये घिरते,
जुल्फों के साये को, क्या हुआ है,
घिर घिर के जब, यह दिल तरसे,
फिर इस दिल को, क्या हुआ है।
फ़िजाऐ मह़की है उनके दम से,
इन कदमों को, फिर क्या हुआ है ।
सदाएं आयें जब उनके दर से,
इस दिल में जाने क्या हुआ है।
फ़िजाऐ मह़की है उनके दम से,
इन कदमों को, फिर क्या हुआ है।
-अदंभ
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खामोशी की सदा ,खामोशी ही होगी,
हर आहट पे ,सदाओं का दरवाजा ,
खटखटाया नहीं करते ......!!!
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सदाएंँ जो आती हैं मुझ तक
सत्य है या मिथ्या भ्रम..!!
ये तुम हो या है कोई और
जो रहता छुपकर हरदम..!!-