तन पे धूप मल कर के,
यूं आया चाँद अम्बर पे।
कि उजली-उजली सी लगती हैं,
सब रातें अमावस की।।
पल्लवी दत्त शर्मा
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इतना सा एक काम मेरा भी करदे...
दुःख के मोतियों को,सुकूं के धागे में पिरो... read more
You will never be alone
If you are your first and last priority.
Pallavi Datt Sharma-
मीडिया
राजनीति के कोठे पर बैठी
वो तवायफ़ है
जो हर रोज़ बिका करती है-
कि रंज-ओ-ग़म की स्याही से,
इश्क़ का अफ़साना लिखते हैं।
देख़ सितमगर मर-मर के हम,
जीने का बहाना लिखते हैं।।
ना सुकूं का कोई पल ही मिला,
ना इस मर्ज़ की कोई दवा मिली।
अब पीते हैं ज़हर तनहाई का,
ओ शब-ओ-सहर तेरी यादों में गुज़ारा करते हैं।।
देख़ सितमगर मर-मर के हम,
ये उम्र गुज़ारा करते हैं।।
पल्लवी दत्त शर्मा-
मन के उधड़े बखिये सीं दो,
और सीं दो कुछ,
फटे-पुराने रिश्तों को।
माँ अपने इस औज़ार से सीं दो,
मेरी यादों के बस्ते को।।
PALLAVI DATT SHARMA
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टूटती हर सांस को इक तेरी ही आस थी।
बुझते हुए चश्मों में सनम इक तेरी ही प्यास थी।।
उठने लगा जनाज़ा मेरा दर से मेरे।
कितने ही कांधे थे सहारे को मगर,
फिर भी जनाज़े को मेरे,
इक तेरे कांधे की ही तलाश थी।।
PALLAVI Datt SHARMA
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हर्फ़ दर हर्फ़ सिमट रहा मेरी कलम का दायरा।
कि मुमकिन नहीं है "माँ" दासतां लिख पाना तेरी।।
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"वो जो रूठा है मेरा हमदम,
है सबब आवारगी मेरी।
कोई जाकर उसे कहदे,
नहीं पंछी मैं पिंजरों का।।"
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मैं सरस-सलिल गंगा मयी,
प्रयागराज तुम बन जाना।
तोहे ताकूँ इक टक जमुना सी,
और ताज महल तुम बन जाना।।
पल्लवी दत्त शर्मा-