''लिखने की जवाबदेही और किसी के प्रति चाहे न हो, अपने प्रति तो है । हम अपने होने की सार्थकता कहाँ ढूँढें ?"
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यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है
- दुष्यंत कुमार
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उड़ते हुए बादल
यूं ही नहीं बुझा पाते
प्यास का आकाश
एक संघर्ष की लंबी कहानी होती है
इन भीगते लम्हों के पीछे,
धरती की थाती से ही तो
ये समंदर वाष्पित करना है बूंदे
और फिर रुई के फाहों सदृश टुकड़े
वापस आते हैं पानी बनकर,
बुझा देते हैं धरा की प्यास.
जीवन एक चक्र ही तो है
निरंतर गति करता हुआ.-
घूँघट के पर्दे से दबी
घर के बर्तनों की आवाज़
अंदर के खराब मौसम पर
गुलाबी होंठों की हँसती भाप
ये भाप कभी हटती नहीं
ना किसी मौसम,
कपड़े,
ना नीर से
दुनिया बेखबर
एक और कश्मीर से।-
घने अंधकार में
टटोलकर राहें तलाशते वक्त
महसूस करना
पुतलियों का असीमित
फैलाव....
भरसक कोशिशों में जुटी
उजाले के कतरे ही
तलाशती है सिर्फ.....
शून्य की जड़ता में
चेतना की तलाश..
अंतर्विरोध से
जूझती
एक यात्रा....!!!
प्रीति
३६५:१३-
जिंदगी बहुत बड़ी है
रुक मत,
चला कर! चला कर!
रोकेंगे हजारों हाथ,
रुक मत!
संघर्ष किया कर!
संघर्ष किया कर!-
अपने संघर्ष के दिनो मे, लोगो को खोने से मत डरिए।
ये वो नहीं जो आपके सफलताओ के जश्न मे शामिल रहेंगे,केवल इसके हकदार तो वहीं है जो सच में आपके साथ होंगे।।-
एक सोच...
सोच कर...
मैं सोच में पड़ा हूँ।
जीवन को जी रहा हूँ...
या युद्ध में खड़ा हूँ।-