अपने श्रम बिंदुओं से सबका पेट भराती है
माँ मूर्त है रब की,हर जिमेदारियाँ निभाती है....-
लक्ष्य मेरा सामने है हर पहर,
हो अंधेरी रात या की हो सहर!
डूबने का हौंसला है सिंधु में,
क्या डराएगी मुझे कोई लहर?
थाह लेनी है मुझे हर ज्वार की,
बैठना तो व्यर्थ है यूँ हार कर!
श्रम की बूंदें ही यहां मोती बनी,
कर्म से गतिमान है सारा शहर!
डर के भागेगा कहां संसार से?
मुश्किलों के सामने अब तू ठहर!
दे वजह कि याद सब तुझको करें,
जाया ना जाये ये जीवन का सफ़र!
स्वतंत्र, साहस से लिखो तुम दास्ताँ,
चख लो बढ़कर नीयति का ये ज़हर!
सिद्धार्थ मिश्र
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अगर वो बूढ़े न होते
कर पाते कुछ श्रम
तो क्या बनते
कभी कहीं
वृद्धाश्रम-
जीवन में विजय का सबसे मूल मंत्र है
दृढ बुद्धि, क्योंकि दृढ बुद्धि से ही दृढ संकल्प, दृढ एकाग्रता और दृढ सुकर्म जन्म ले सकते हैं|
और दृढ बुद्धि का सबसे आवश्यक साधन है
अपने लक्ष्य के लिए हर संभव श्रम करने के लिए तत्पर रहना|-
कितना परेशान है एक युवा वर्ग
जो माँ-पिता के श्रम का ऋणी है
बहुत कुछ देना चाहता है वापस
पर जेब से तंग है ....
रोजगार का मारा एक ये युवा वर्ग
बेचारा ....
रुकिए!अभी कहीं मत जाइए ....।
एक युवा वर्ग शेष है,जो जुबां का
तेज है...
बड़ी बड़ी फेंकता है लेकिन कुछ करने
के नाम पर बगलें झाँकता है
सिगरेट के कश लगाता हुआ ये वर्ग किसी
पान की गुमटी पर देखा जा सकता है
छेड़ा-छाड़ी इनका परम धर्म होता है
पैसों के लिए घर में ऊधम करना इनकी
खास विशेषता है
और तो और इनकी संख्या बहुत ज्यादा है
ये एक ज्वलंत समस्या है...
सामान्य व्यवहार करने वाला युवा इनके
व्यंग्य बाण का शिकार होता है
क्योंकि वो फिक्रमंद इनसे जुदा जो होता है,
इसलिए वो इनसे तिरस्कृत होता है
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हर मुश्किल का हल होगा..
आज नहीं तो कल होगा ....
है भरोसा अगर अपने श्रम पर
तो, मरुस्थल में भी जल होगा
मरुस्थल में भी जल होगा..।-
श्रमसाधक की सी दी है प्रभु, क्यों देह मुझको
पिपीलिका के प्रयत्न कभी निष्फल नहीं होते!-
सफलता की मिठास
श्रम से ही खुल सकता है, किस्मत के द्वार
श्रम से ही जीता जा सकता है, पूरा संसार
श्रम से होता है,हर एक सपना साकार
श्रम से ही लिख सकते हैं,
कामयाबी की विजय गाथा का इतिहास
श्रम से ही मिल सकता है...-