शुक्रगुज़ार हूँ रब का
हर किसी को
वो नहीं देता...
जो..मुझे मिला है।
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, उन ही में मिली यूँ
फूलों जैसे मुरझा गए जो रिश्ते
....निहारकर है उनको क्या खिलना !!
शिकायत शिकायत, बनाई कमी कि सिर्फ़ क्यूँ
दरकिनार हमारी यादों को मेरे पास
.....शुक्रगुज़ार है उनका छोड़ जाना !!
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शुक्रिया
यूँ ही नहीं शुक्रगुजार हूँ आपका.
राहें जो अलग कर ली ऐ रहमगर आपने
ख़ामोश हो गए हैं अब रोने के बहाने कितने.
हैरां हूँ पीछे छोड़ आए हम भी अफ़साने कितने.-
रब तेरा लाख लाख शुक्र है
तुमने हमें छोटा दिल जो दिया
अगर बड़ा दिल दिया होता न
हम तो कबके मर चुके होते-
1. उलझनों और ठोकरों की आंच में तपाकर हम जैसे कोयलों को हीरा बनाने का माद्दा रखती है
2. हम से नीचे वालों को दिखाकर हमें शुक्रगुज़ार होना सिखाती है और ऊपर वालों को दिखाकर और मेहनत कर उनसे ऊपर पहुँचने के लिए प्रेरित करती है
कुछ मिलाकर दुनिया हमें जीने का सही सलीका सिखाती है बशर्ते हमारे अंदर सीखने की चाह होनी चाहिए-
शुक्र-गुजार हूँ उस कलमकार का,
जिसने ये कलम 📝बनाईं,
वरना मेरे इन रातों का हमराज़ कौन होता।।-
शुक्रगुज़ार हूँ...!
ऐ हवाओं, रुखसार से चिलमन जो हटा दी तुमने...!
शुक्रगुज़ार हूँ,.....चाहत का दीदार तो हुआ...!!-
शुक्रगुज़ार हूँ खुदा तेरा, जो तुने इतनी बख्शीश दी है,
वरना मेरी क्या औकात, जो जिंदगी तुने दी है।-
जिनको मौत मिली शुक्रगुज़ार हैं
वो कि बस एक बार मिली...
हमसे शायद रुसवा है ख़ुदा जो
हमें मौत कई बार मिली...!!-
उम्र का हर दौर गीतों से जिनके जितना गुलज़ार है
हमारे उम्र का हर दौर उनका उतना ही कर्जदार है
मगर सभी के दिल के सबसे करीब होता बचपन
और हमारे दौर के बचपन के सबसे करीब हैं आप
चाहे हो वो बचपन हो चड्डी पहने हुए मोगली का
या हो सिंदबाद की पानी में अगर-मगर डोलती नाव
चाहे हो केले के छिलके पे फिसली और तितली के
फूंकने भर से उड़ जाने वाली कहानियों का गुच्छा
चाहे लकड़ी की काठी का दुम दबाये दौड़ा घोड़ा
जिन्होंने बनाया बचपन को हमारे इतना यादगार है
यादों के झरोखे से झांकता बचपन आज भी..
बीते बचपन के हर एक लम्हे से उनका शुक्रगुज़ार है
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