देखो आज बरसात आई है,,नभ में काले बादल मँडरा रहे हैं
हर जगह हर कण में हरियाली छाई है
रिमझिम की वो धुन, कल कल की वो नाद
आज फिर से गुंजित हो रहे हैं,,आओ सखी देखो,,आज फिर बरसात आई है
नवबधू बनते फिरते बीरबहूटी,,कंही खो गये हैं
वो तृषार्त्त चातक कंही दूर चले गये हैं
अब चरों तरफ हरियाली नहीं,,,रंग बिरंगे आवास छाए हैं
अब तटिनी बीरबहूटी जैसी प्रतीत होती है
बारिश के इंतज़ार में वो किसान चातक बने फिरते हैं
बड़े दिनों बाद आज सूखी धरती
पावस की स्पर्श में चैन की साँस ली है,,,आओ सखी देखो
आज फिर बरसात आई है
-