सबके जीवन में खिलें,
वसंत के भव फूल।
शारदे की कृपा रहें,
हो वसंत अनुकूल।।-
जय- जय माँ शारदे ,
वर दे ,वर दे वरदे !
शब्दों में भाव भर दे
अमृत -सा अक्षर कर दे,
जग-मग जग कर दे,
जय-जय माँ शारदे,
वर दे,वर दे,वरदे!
जग में ज्योति जगा दे,
प्रेम-प्रकाश फैला दे,
क्लेश -विषाद हर ले,
जय-जय माँ शारदे,
वर दे वर दे वरदे!
विनती सबकी सुन ले,
ज्ञान -विज्ञान भर दे,
हृदय सदय कर दे,
जय-जय माँ शारदे,
वर दे वर दे वरदे!----- नवीन कुमार 'नवेंदु'
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माँ शारदे फूलों से सजाऊँ
धूमधाम से बसंत मनाऊँ
ना जानूँ ऋचाएँ मैं अज्ञानी
शब्द-पुष्पके मधु गीत गाऊँ
शीश वरद-हस्त रख दे माते
नितचरणों में शीश झुकाऊँ
बसन्त-पंचमी की शुभकामनाएं
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-सीमा शर्मा'असीम'-
ज्ञान का वरदान दो माँ,
विश्व में सम्मान दो माँ,
मैं अकिंचन पुत्र तेरा,
दो सुखद परिणाम दो माँ!
शारदे माँ पथ दिखा दो,
अब कोई दीपक जला दो,
कालिमा से मुक्त कर दो.!
भाव पंचम दान दो माँ.! विश्व में
हो प्रकट नूतन सवेरा,
मांगता है पुत्र तेरा,
आर्द्र स्वर से याचना है,
अब कृपा अविराम दो माँ.! विश्व में
सिद्धार्थ मिश्र-
जिसकी कलम हर बार कुछ नया कहती हैं।
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उस पर शारदे,वीणा-धारीणी की कृपा रहती हैं।
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ये तो दिलो की आवाज हैं।
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वरना हर घर में पेन,कलम,कागज,की साज़ हैं।
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किसी खास पर ये रब की रहमत होती हैं।
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उसी से दुनिया सहमत होती है।-
साई तुम हो भोले नाथ साई तुम हो दया निधान
साई तुम हो जगत में माह हनुमान से बलवान
साई तुम हो राम साई तुम हो श्याम
साई तुम हो जगत में सबसे महान
साई तुम महाकाली साई तुम ही माँ शारदे
साई करती हूँ विनती अब तो भव से तार दे
साई तुम हो मुहम्मद तुम ही हो गरीब नवाज
साई तुम ही नानक की बाणी में ईसा के साथ हो
साई तुम ही दिगम्बर साई तुम्ही कबीर हो
साई तुम्ही बुद्ध साई तुम्ही महाबीर हो
साई तुहि निराकार और साई तू ही साकार हो
साई करती हूँ प्रार्थना अब तो आके भव से तार दे
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सरस्वती वन्दना 🙏🙏— % &जयति जयति हे मात शारदे ,
मिथ्या जग से हमें तार दे ।
हम अविवेकी मूढ़ मन्द मति ,
शुभ्र ज्ञान देकर सँवार दे ।।
— % &नमन मात हे वीणावादिनि ,
नमन तुम्हें ऐ बुद्धि दायिनी ।
सकल कलुषिता हर लो माते
महाबला हे पतितपावनी ।।— % &हंस वाहिनी देवी विमले ,
अघ तम घोर कठिन सब हर ले ।
शरणागत हैं आर्त्त स्वरों में ,
मात हमारी विनती सुन ले ।। — % &कंठ बसो हे मातु भारती ,
निशदिन नव नव गीत सुनाऊँ ।
चन्द्रवदना माँ मृगलोचनी ,
ध्वजा धर्म की मैं फहराऊँ ।।— % &-
कान्त कोमल कंज राजे, छवि मनोहारी।
चन्द्रवदना चारु चितवन, चंद्रिका धारी।।
कामरूपा ज्ञानमुद्रा, सिर मुकुट सोहे।
मालिनी सुषमा अलौकिक, चित्त को मोहे।।
*--ऋषभ दिव्येन्द्र*-
वर प्रदा हे देवी माँ हमको नया संसार दे।
ज्ञान पाने को करें पूजा तेरी माँ शारदे।
जब बनी थी सृष्टि तब ये सृष्टि पूरी थी कहाँ?
तब कहा ब्रह्मा ने माँ से सृष्टि को आकार दे।
है उदासी और मायूसी यहाँ चारों तरफ।
अवतरित होकर इन्हें माँ शारदे तू तार दे।
हो गयी तब तब बसंती रुत सुहानी सी यहाँ।
तार वीणा का कभी जब तूने छेड़ा शारदे।
चाहता हूँ मैं कि तेरा हाथ मेरे सर पे हो।
इक घड़ी के ही लिए बच्चों सा मुझको प्यार दे।
ज्ञान रूपी नेत्र खुल जाए "कमल" का हो करम।
सत्य लिख पाऊँ सदा इस लेखनी में धार दे।-