याद आए ना वो भूल जाने का तरीका बता,
जिस डगर प' हूँ लौट जाने का तरीका बता।
बिछुड़कर जिएं तो कैसे उस सितमगर से,
दिल की लगी को बुझाने का तरीका बता।
यकीं नहीं मगर मैं उस पर यकीं करता हूँ,
पशोपेश से निकल जाने का तरीका बता।
मेरे जिस्म में वो बसा है मेरी रूह की तरह,
रूह के जुदा हो जाने का तरीका बता।
वो ठहरा दरिया के बहते पानी की मांनिद,
दरिया में खुद को डुबाने का तरीका बता।
तुझसे बिछुड़कर जिंदा न रह पाए'असीम',
सब छोड़ पास रह जाने का तरीका बता।-
मैंने उससे पूछा कि
पूरे दिन के कामों के बीच
मेरी यादों के कितने पल
तुम्हारे पास होते हैं ?
" बहुत " - उसने जवाब दिया।
वह बहुत अच्छा वक्ता है।
गागर में सागर भरकर
अपनी बात कह देता है!-
ग़म ही ग़म खुशियाँ मयस्सर नहीं
जमीं तो है मगर आसमां सर नहीं ।
फँसा कोई धारों के बीच में बेचारा,
भरी दुनिया में भी कोई रहबर नहीं।
सोच रखे है दुनिया भर की दिल में,
खुदी के घर की उसको ख़बर नहीं।
रोता है चेहरा छुपाकर मुझसे पागल,
देखता नहीं मैं फिर भी बेखबर नहीं।
मेरा होकर भी कोई मेरा हुआ नहीं,
इतना भी आसाँ ये पीना जहर नहीं।
तेरे दीदार को हसरतें मचलती रहीं,
'असीम' तुझे क्यूँ ज़रा सबर नहीं।-
जाते हुए दिसम्बर !!
हर उस लम्हे के लिए तेरा शुक्रिया
जिस लम्हे में तूने अच्छे-बुरे अनुभव दिए,
कोई अपना पराया हुआ तो कोई पराया अपना हुआ,
किसी के कारण होठों पर मुस्कुराहट आई,
तो किसी ने आँसुओं से दामन भर दिया,
किसी पल जिंदगी बोझ लगी
तो किसी पल जिंदगी खुदा की नेमत लगी.
तूने जो भी दिया,
मैंने सब बाहें पसारकर लिया..
अबकी बार जब आना
इतना सुनते जाना..
नई खुशियाँ न दे तो न सही
लेकिन जो इस वक्त हैं,
उन्हें बनाए रखना..
तेरा अगले साल आने के इंतजार में
कलेंडर के पन्ने पलटते रहेंगे..
अलविदा..-
मैं लिखूँ जब तुझे,प्यार बेशुमार लिखूँ,
छोटी-सी दुनिया का बड़ा संसार लिखूँ।
मेरी आँखों में उदासी की चादर छाई,
ख्वाहिशें बंद मुट्ठियों में हजार लिखूँ ।
पल-पल है जो मरता बिना नौकरी के,
उम्मीदों से भरा ऐसा बेरोजगार लिखूँ।
ना दुआ काम आती है न दवा आएगी,
तेरी मोहब्बत में खुद को बीमार लिखूँ।
जून की गर्मी भी न उतार पाए जिसको,
तुझे दिसम्बर का चढ़ता खुमार लिखूँ।
कहानियाँ सब होंगी मुक्कमल'असीम,
सूनी आँखों का सुनहरा इंतज़ार लिखूँ।
-
दर्द देने वाले तू दवा भी बता दे,
जिंदा नहीं तो मरने की दुआ दे।
हमें मंजूर तेरे हर सितम हो गए,
फूल नहीं राहों में काँटे सजा दे।
जैसे भी हो पर तू तो खुश रहना,
माज़ी को मेरी बददुआ लगा दे।
हश्र देखे मेरा तो कोई सबक ले,
मेरे यकीन की कुछ तो सज़ा दे।
कोई मरता नहीं किसी के बिना,
ज़ेहन में सच आखिरी बैठा ले।
मुझे मेरे आज का ही नहीं पता,
मेरे मुस्तकबिल में आग लगा दे।
तुम्हें मुबारक तुम्हारे वादे झूठे,
कोई हमें भी सच से मिलवा दे।
तल्खी बहुत लहज़े में 'असीम',
हर बात को हवा में अब उड़ा दे।-
जब कभी जिंदगी में थककर
या उदास होकर बैठने लगो,
तो बैठना कुछ घड़ी पापा के पास..
सारी परेशानियों के हल मिल जाएँगे
और उस वक्त देखना पापा का चेहरा
जो सारी जिंदगी के तजुर्बे सोखे हुए होगा
जो तुम्हारी थकी हुई पीठ पर
थपकी देते हुए कहेगा
कि तुम्हारे ऊपर अभी आसमान है..-