ये तेरी अदाकारी,
लगती है इक शिकारी।
आदम के बांकपन पर,
हरदम पड़ी है भारी।
तू पान की गिलौरी,
ये पान में सुपारी।
इसके बग़ैर नर को,
फ़ीकी लगे है नारी।
जिसपे चलाए जादू,
हो इश्क़ का पुजारी।
नर, दैत्य, देव हारे,
ये शस्त्र तेरा, नारी!
अंजलि राज
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गर तू लौ बुझाएगा मेरी,
मैं तेरी तमाम कोशिशों को
आग लगाकर रोशनी बना लूंगी...
बेड़ियों में कैद करना मत मुझे,
मैं इन्हें पिघलाकर शस्त्र बना दूंगी.....-
वेदवती और सीता में अधिक सशक्त कौन ?
तपस्विनी वेदवती, वह व्यक्तित्व हैं,
जिनकी छाया मात्र दिख जाने पर रावण अपने अस्त्र भूमि पर रख देता था।
जो अपने प्रबल तर्कों से रावण जैसे श्रेष्ठ विद्वान को निरुत्तर कर देती थीं।
योद्धा सीता, वह शख़्सियत हैं,
जिनसे युद्धरत रावण केवल इसलिए हार जाना चाहता था
क्योंकि रावण को सीता में वेदवती की छाया दिखती थी।
इसी प्रश्न को अन्य प्रकार से पूछूं तो..
विचार और शस्त्र में अधिक सशक्त कौन है ?
"विचार",...जिनके कारण आज भी
बुद्ध मूर्तियों के सम्मुख लोग सिर झुकाए दिख जाते हैं
"शस्त्र",.... जिनका प्रभाव कम पड़ते ही
हिटलर ने मित्र राष्ट्रों के विरूद्ध शस्त्र उठा लिये थे।-
देखो, शब्दों ने बदली है चाल
लाँघ रही रूढ़ियों की ड्योढ़ी, काट रस्मों की जंज़ीर
मानो लग गये हैं पंख, और तैयार हों भरने को उड़ान
देखो, शब्दों ने बदली है चाल
शब्द ही तो हैं
जो रहते सृष्टि के आदी से अंत तक
इन्हें सिर्फ कहा जा सकता है
इन्हें सिर्फ सुना जा सकता है
इन्हें सिर्फ लिखा जा सकता है
इन्हें सिर्फ पढ़ा जा सकता है
इन्हें न शस्त्र काट सकते हैं, न आग में ये जलते हैं
न हवा सुखा सकती है, न जल में ये गलते है
छुपे होते हैं, सोये होते हैं, रहते हैं समाधी में
किसी कवि के हृदय में,
जब होती है जरुरत, तब लेते हैं ये अवतार।-
दो बातें ,दो लाइनें ,और सीधा दिल पे प्रहार
शस्त्र भला ये कहां से लाई हो तुम।-
थोडा-थोडा करके,
कितने परिचित कितने अपरिचित चले गये।
ना जाने ये कैेसी महामारी है
बिना शस्त्र का युध्द कैसा,
ये महाभारत से भी भारी है।
हे दयानिधे । दया करो ,
अब कौन सी प्रलय की तैयारी है।
हे प्रकृति। वास्तव में तेरी महिमा न्यारी है।।
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यूं तो..
ज़बान के शस्त्र चलाना आसान है बड़ा,
पर संस्कारों की घुट्टी रगो में घुटी पड़ी है..-