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शरीक हो के तेरे गम में
तेरे इश्क़ में शहीद हो जाऊँ
मै तो शुरू भी हुआ था तुझसे
आ तुझ में ही खत्म हो जाऊँ।-
दर्द से लथपथ मेरी राह मेरे पल पल "सुशील",
टूटा हूं इस कदर खुदा भी शरीक है मेरी बर्बादी में।-
हर शख़्स में शरीक कई शख़्स हैं।
आपस में मिज़ाज मिले भी तो कैसे।।-
ना नज़रें झुकाई मैनें ना दिल उदास होने दिया
दूर जाने में तू खुश,बस तेरी खुशी में शरीक हुआ...-
कैसे लोग हैं जो अमीरो को देख जलते हैं
मगर गरीब की बात आते ही जवाँ बदलते हैं
मेरे कूचे से उठते ही वो शख्स हवा हो गया
यहां मेरे अरमाँ है सीने से नही निकालते हैं
एक वो है जो कैद परिंदे आजाद कर रहा है
यहाँ रोज आँखों मे हजारों ख्वाब पलते हैं
सोचा ये था इश्क़ करेंगे तो सकू से गुजरेगी
मगर यहां भी तन्हाई है तो चलो घर चलते हैं
वो मौसमी परिंदे है कहा एक जगह ठहरते हैं
बंजारो की तरहाँ रोज कई घर बदलते हैं
बेवफा से मिले गमों को याद कर मत रोना
पहाड़ बनो कई दरियां वहां से निकालते हैं
रोते रोते सूख गई नदी इन आँखों की,
अब ना इक कतरा आंसू भी छलकते हैं
उसके गम में शरीक हो तो जाएँ हम शादाब
मगर सुना है उसके गाँव वाले हमसे जलते हैं-
होता नही है कोई, बुरे वक्त में शरीक.....
🍁🍁🍁
पत्ते भी भागते हैं, खिजां में शजर से दूर।-
कुछ यूं ही हम
तुझे खुद में शरीक किए हुए हैं,
कि जैसे फूलों पर
आसमां बिछ जाता है पलक बनकर।-