क्या अच्छा फैसला है..
ख़ामोश हो जाना
ज़वाब" हाँ" में दिया मैंने
ऐसा नहीं कि ख़ामोशी से कई
बलायें टल जाती है
न ये कि,कमजोरी की निशानी
है ख़ामोशी..
बल्कि ये कि,कहने पर मिले हक़
तुम्हे,तो ऐसे शब्दों का क्या मूल्य
कि चीख कर तक़लीफ को हो बताना
तो ऐसे शब्दों का क्या अस्तित्व
'तुम हो अभी' शोर इस बात का मचाना पड़े
तो "हाँ" ख़ामोशी को चुनना
बेहतरीन फैसला है...
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जब घर में गूँज रही सिसकियाँ
किसी को सुनाई ना दे..
तो हक़ के लिये उठी आवाज़ पर
यकीनन,सबको बहरा हो जाना चाहिए...-
जब तक हमें,ये महसूस होता है कि
ज़िन्दगी मुहब्बत,ख़्याल,ख़ुलूस से नहीं
बल्कि पैसों से चलती है..
तब तक हमारी ज़िन्दगी का इक दौर
ख़त्म हो चुका होता है...-
कभी-कभी किसी बात का फ़र्क नहीं पड़ता
कभी, किसी बात का फ़र्क नहीं पड़ता
इस बात का भी फ़र्क पड़ता है....-
ऐसे भी मिलेंगे, कुछ लोग तुम्हें
जो रखते हैं
तुम्हारी नाकामयाबी का,तो तुम्हारी बढ़ती उम्र का हिसाब
नहीं रखेंगे तो
तुम्हारे संघर्षों का, तुम्हारी जागती रातों का हिसाब....-
बीत जाने के बाद भी
जिस वक्त में ठहरे रह जाते हो तुम
असल में
बस वही वक्त जीये होते हो तुम...
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मुकर्रर है हर चीज़ की तारीख़ यँहा
बेवजह ना मिलता कोई ना बिछड़ता है यँहा...-
कुछ रिश्ते आपके एहसासतों को,दीमक की तरह खा जाते हैं
उनका मुट्ठी से रेत की तरह,फिसल जाना ही बेहतर होता है...-
जाने किस यक़ीन पर,रिश्तों की बुनियाद बनाई जाती है
कोई रिश्ता काबिल नहीं एतबार के,ये बात भी हर ज़ुबान से बताई जाती है...-
किसी ने पूछा कि -मुहब्बत और इश्क़ में फ़र्क क्या है?
संजीदा जवाब - मुहब्बत तारीखों में क़ैद होती है
और इश्क़ इन सारे भरम से आज़ाद...-