कुछ शरारत ऐसी हो गयी मेरे साथ
वो मुझसे दूर जाने के बाद भी
मेरी खैरियत पूछते है
दिल में गमों का समुन्दर छुपाये रखा है
और वो मेरे हँसने की वजह पूछते है
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थोड़ी ढील में जरूरी है,हमेशा अनुशासित होना ठीक नही,
सख्ती भी जरूरी है, पर पत्थर हो जाना ठीक नही।-
क्या करूं पिघल गयी वरना
मैं भी बड़ी शख्त थी ..
और कुछ होता तो चल जाता
जनाब आशिकी कम्बख्त थी....
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अपनी एहमियत आपके आने से ही जान पाई मैं,
इतने शख्त इंसान को भी बदल दिया था मैंने,
कुछ तो ख़ास बात देखी होगी आपने मुझमें,
वरना किसी ने मोहब्ब्त के भी काबिल ना समझा था मुझे ।-
वो इश्क़ में मुझसे दो - दो हाथ कर बैठे
गवाँ के चैन वो अपनी नींदे हराम कर बैठे।
बड़ा नाज़ था उनको अपनी शख्त शख्सियत पर
आँखे चार होते ही वो खुद को बर्बाद कर बैठे।-
खवाबों में भी नही आते आजकल,
बहुत शख्त मिज़ाज हो गए हो।
कहते हो वक्त आ गया है बिछड़ने का,
बहुत रीति रिवाज वाले हो गए हो।
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Kyunki anushashan ke liye zindagi Nahi
Balki zindagi ke liye anushashan hona chahiye.
Aur
Itne bhi sakt na ho jao ki koi tumse baat karne se bhi katraye
Aur tumhari sakti dekhkar patthar bhi Sharma Jaye.
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तुम्हारे यहां क्या वक़्त हो चला है ?
मेरा तो वक़्त बे-वक़्त हो चला है
बगैर खंजर ही वो ज़ख्म देता है
लहज़ा उसका सख़्त हो चला है
अंगुली उठाओगे, हाथ उठ जायेंगे
हर शख्स उसका भक्त हो चला है
इलाज़े नज़र अब मुमकिन कहां है ?
सरसे ऊंचा उसका तख्त हो चला है
बहते - बहते अब आंसू नहीं रहे हैं
गौर से देखो इनमें रक्त हो चला है
इज़ाजत नही थोड़ा और वक़्त लूं
चलने का मेरे जो वक़्त हो चला है-
लोग कहते हैं,
मेरी आँखे पत्थर सी हैं,
अब उनको बतलायें कौन,
आज शख्ती से खड़ा हिमालय भी कभी समुंदर हुआ करता था...-