सतीश दुबे (S K Dubey)   (बैंज़िल (BenZil))
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Joined 11 June 2020


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Joined 11 June 2020

कुछ फूल से चेहरे बागों में खिला करते थे
कुछ फूल अक्सर किताबों में मिला करते थे
हमसे उन रातों का ज़िक्र क्यों किया करते हो
जिनमें ख़त उनके चिरागों में जला करते थे

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यादों में कुछ उसका रक्स है ऐसे
यादें न हों, उसका अक्स हों जैसे

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शिकायतें भी एक दिन फ़रियाद बनती हैं,
बदलते मौसमों ने इतना तो सिखाया ही है!

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तन्हाई में रहें या किसी महफ़िल में हम
याद थे, याद हो और याद रहोगे तुम

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इससे पहले तुम्हे वक्त बदल दे,
तुम्हे वक्त को ही बदलना होगा।

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गम सारे घर लौट जाएँ

कोई दूर से सदा दे फिर
हम सारे घर लौट जाएँ

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दाग़ लगा दोगे वो महताब नही हूं मैं!
ख़्वाब जला दूंगा वो आफताब हूं मैं।

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मानव सभ्यता की सर्वश्रेष्ठ ख़ोज,
आग पर नियंत्रण थी।
उसने बाहर की आग को तो
काबू कर लिया लेकिन,
उसके अंदर की आग,
उसे आज भी जला रही है।

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रोज़ ज़िंदगी का ज़हर पीते हैं,

भक्त तो महादेव के हम भी हैं।

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मुबारक हो आप लोगों को साल नया ,
मुझे पुराने से अभी हिसाब करना है।

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