मैं राजनेताओं के लिए आतंक हूँ
मतदाताओं की ताकत हूँ
पर जनता प्रलोभन में आ जाये तो
परिस्थिति में इसकी उलट हूँ
मैं वोट हूँ-
नेताओं की चीख में खामोशी का मधुर राग है
लोकतंत्र में उंगली पर ये सबसे स्वच्छ दाग है।।-
मेरे मज़हब ने ही मुझे यहाँ सबसे ज्यादा चोट दिया ।
हर किसी ने जात पूछा और फिर जाकर वोट दिया ।
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मेरे मज़हब को जब चाहो, तुम आकर नंगा कर देना ।
थोड़ा और वोट चाहिए हो तो फिर एक दंगा कर देना ।
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कोई नही पहुंच सका अवाम के इंतकाल पर,
दब चुकी है न ये लाशें, अब वोट कहाँ दे पाएगी।-
"व्यंग्य"
मैं(वोट) राष्ट्र स्तरीय नेताओं को
मलिन बस्ती में भोजन का अवसर प्रदान करती हूँ😶
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। मैं वोट हूँ
स्थापित पे एक चोट हूँ,
परम्पराओं की ओट हूँ,
बिक गया तो नोट हूँ,
खल गया तो खोट हूँ,
ख़ुशी से लोट पोट हूँ,
लिख गया तो कोट हूँ,
हुक्मरानों की निगाहों में
मैं तो केवल एक वोट हूँ-
कोई "व्यक्ति" मरता है तो उस पर होता है "शोक",
पर जब वो व्यक्ति, "एक व्यक्ति" से बन जाता है
"सरकारी आंकड़ा" तो उस पर शोक नहीं बस होता है "बहस",
और वो बन जाता है "मरे हुए शरीर" से
"अगले चुनाव" में "वोट बटोरने "का "मुद्दा"..!!!
(:--स्तुति)-
मजहब पूछ कर आज फिर चोट दे गया।
रोटी देने आया था और मेरा रोट ले गया।
काजू-बादाम-पिस्ता दिखा अख़रोट दे गया।
झूठे वादे करके फिर वो मेरा 'वोट' ले गया।-