सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की क़ीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
[ सुभद्राकुमारी चौहान ]-
वीर रस -(कविता)
कवि गाओ ऐसे गान।
जो वीर कंठ का हार बने, रणभूमि में तलवार बने।
संचारित हो जिनको सुनकर, मुर्दों में भी जान।
कवि गाओ ऐसे गान...1
जिनको सुनकर अचला डोले, सागर भी खाए हिचकोले।
साहित्य के अंबर विशाल में, आने लगे तूफान।
कवि गाओ ऐसे गान....2
संपूर्ण विश्व में हो जिनका फैलाव,अविरल स्त्रोत वाहिनी का कभी न हो ठहराव।
मानव के कल्याण मात्र का साधन बने महान।
कवि गाओ ऐसे गान....3
जन साधारण भी समझे जिनको, जो मार्ग प्रशस्त करें जीवन का।
सुनकर जिनको कायर भी कर दे, तन- मन- धन बलिदान।
कवि गाओ ऐसे गान...4
Chandrakantajain
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बन्द मुट्ठियों को खोल तू ,
बेखौफ़ हो और बोल तू।।
बेटी है तु माल नहीं ,
गाँधी जी का गाल नहीं।।
है घर का सम्मान तू ,
अब सह ना अपमान तू।।
ना किस्मत को कोश को तू ,
अब कर ना अफ़सोस तू।।
बेटी होना पाप नहीं ,
लक्ष्मी है तू श्राप नहीं।।
Please read the caption-
मातृभूमि का मान लिए उग्र रुद्र को देखा है
हर सेनानी में इस जग ने वीरभद्र को देखा है।।
नमन तुम्हें मेरा मृत्युंजय, मर कर अमर रहे हो
वज्रघात करते अरि ने कुपित इंद्र को देखा है।।
करबद्ध प्रणाम तुम्हें मेरा, अद्भुत वीर रहे हो
शांत हृदय में अग्नि लिए तपे चंद्र को देखा है।।
देशप्रेम में प्राण दिए, अनुपम ख्याति तुम्हारी है
तुममें जग ने लिए पिनाक राघवेंद्र को देखा है।।-
रणभेरी सुन बोला, वीरों मातृभूमि पर संकट है
अरि सेनाओं से घिरा राज्य ये समय बड़ा विकट है
चमकी दामिनि सी तलवारें, धनुष बाण लहराए
बोला सेनापति हुंकार के, कोई शत्रु ना जाने पाये
हर बात सुनो मेरी सेनानी, रण में नाम डुबोना मत
प्राण जाएं तो चले जाएं,सम्मान कभी तुम खोना मत
सेनानी बोला बढ़ा जिधर से अरि मस्तक वहीं गिरेगा
जब तक है रक्त धमनियों में ये सैनिक नहीं हिले गा
जो बात आ गयी साहस पे तो यम से मैं टकराऊं गा
साक्ष्य चाहिए तो काली के खप्पर को भर लाऊं गा
इन घावों का, इन बाणों का स्नेह मुझे जो प्राप्त हुआ
धरा बनी इतिहास युगों तक जहाँ कहीं अरिघात हुआ
जय महाकाल के घोष से कोई संकट ना आने पायेगा
शक्ति भवानी से सेनानी अरि दल को काट गिराए गा
मातृभूमि की लाज बचाने, नाम अमर कर जाऊं गा
शक्तिपुंज की ज्वाला बन मैं आज कहर कर जाऊं गा।।-
बाहुबल सम्मति से वरण करूँ,
अंग आलिंगन को प्रतिबंध धरूँ
दृग के विशिख इला को समर्पित,
कुंतल सज्जा के विरुद्ध युद्ध करूँ|
आसन शासन बाहुबल न्यौछावर,
नूपुर का तिरस्कार स्वीकृति करूँ
प्रचण्ड ह्रदयाग्नि से श्रृंगार धरूँ,
कुलिश कर धारण युद्ध करूँ|
रसज्ञा अग्निवर्षा हितकर,
प्रचंड चण्ड हो करे प्रहार
विध्वंस खल का निश्चित,
कर धारण प्रलय अवतार |
भयंकर भृकुटि भाल ताने,
दामिनी सी करवाल निकले
हुंकार से पृथ्वी स्वयं कांपे,
स्वयं काल भी पथ पखारें|
नृत्य करें काल की महिमा,
शक्तिभावनि का कर वंदन
महादेव का कर सुमिरन,
करने धारण मृत्यु का चंदन
वीर योद्धाओं का अभिनन्दन|-
बनकर अनल तेज़ अब
कण कण पुलकित होगा
मैं तज जाऊं निज मोह भी
क्या फिर कोई दिनकर होगा
व्याघ्र सुसुप्त नही कदापि
मध्य काव्यवन में रण होगा
"रश्मिरथी" वो विहग उठा
"ऊर्वशी" का चित्रण होगा
मैं तज जाऊं निज मोह भी
क्या फिर कोई दिनकर होगा
"कुरुक्षेत्र " में कर "हाहाकार"
परशुराम करे प्रतीक्षारत हुंकार
जीवन सोता मधुर निर्झर होगा
समर शेष है अभी धैर्य धरो
समय की प्रत्यंचा पर देखो
नवनिर्माण फिर फिर होगा
मैं तज जाऊं निज मोह भी
क्या फिर कोई दिनकर होगा-