जब एक अहंकार और दूसरा लालच और तीसरा उदासीनता की दरारों से जर्जर हो चुका होगा तो कब तक खड़ा रहेगा चौथा खंभा अपनी बिक चुकी खबरों की सीमेंट और पहले से तय प्रश्नों के उत्तरों की ईंटों को लेकर।
पहले शायद जब ढहेगा वहीं तो बाकी के तीन खंभो पर
कब तक टिकी रहेगी लोकतंत्र की ये इमारत और बचा रहेगा संविधान।-
ये ही कि सबको अपनी रजा देना है
लोकलुभावनवाद राष्टवाद उग्रवाद को सजा देना है-
मीडिया फन-तंत्र,
बेरोजगार पर-तंत्र,
गिरता अर्थ-तंत्र,
सबकुछ दिखता है,
पर
दिखता नही
सच्चा लोक-तंत्र....-
सत्ता का खेल तो चलेगा,
सरकारे आएगी, जाएगी,
पार्टियाँ बनेगी, बिगड़ेगी,
मगर ये देश रहना चाहिए।
इसका लोकतन्त्र अमर रहना चाहिए।
- अटल बिहारी वाजपेयी
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अब धीरे-धीरे मर रहा है,
इंसान धीरे-धीरे हैवान बन रहा है;
एक ही मातृभूमि में जन्मे भाई लड़ रहे हैैं,
सच्चा लोकतंत्र अब धार्मिक-मजहबी तंत्र की बलि चढ़ रहा हैll-
भरें हो पेट तो हो-ह्ल्लें का नुकसान लगाया जाता है,
भीड़ में दिखता वो मलंग तो दो निवालों को जाता है ।।
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अभी के लोकतंत्र में "किसान"
"अनाज के कमी" से नहीं मरता,
वो "अनाज में,अनाज के कमी" से मरता है..!!!
:--स्तुति-
मेन रोड की बायीं तरफ़
शुरू होती एक गली
का पहला मकान,
भव्य, आलीशान।
जहाँ साल की हर बारिश में
भीगता है एक कुत्ता।
डॉक्टर बंसल का पालतू कुत्ता।
ये छिप नहीं सकता
गली के बाक़ी कुत्तों की तरह
रोड की दायीं तरफ़ खड़ी
ट्रकों के नीचे, या
सोनू की दुकान के पीछे,
जहाँ पर लगा है
एक पीला तिरपाल।
डॉक्टर बंसल के इस कुत्ते में
तुम देखते हो किसान,
एक मध्यवर्गीय इंसान।
और मैं....मैं देखती हूँ
भीगता लोकतंत्र।-