ओ ज़रा अंधेरे को चूना लगा,
रोशनी तेरा यूं घूंघट से बाहर आना।
तेरा हौले-हौले से मुस्काना,
देख कैसी रौनक लाई है।
तूने हर तरफ चकाचौंध फैलाई है।
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मुझे याद है वो बचपन के अंधेरों को मिटाना,
वो ढलती हुई शामो में "लालटेन जलाना,"
वो कोयल की कू कू को सुन सुन दोहराना,
वो आंगन वो पाठक, वो बाँसुरी बजाना...
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जब रात भर चाँद की चाँदनी में हम एक दूसरे के साथ बैठे थे।
घटाए घिर कर अँधेरा कर दिया करती थी तो मुझें आज भी याद हैं तुम्हारा लालटेन जलाना।-
चलो आज लालटेन की गाथा गाते है,
बिन माचीस, बिन तेल लालटेन जलाते है ।
पतली सी सहमी सी लालटेन की ज्योत अकेले अंधेरे से लड हमे प्रकाश मुहैय्या कराती है,
हो अंधकार जीतना बडा खुद जलकर वो हमे ज्ञान का प्रकाश फैलाना सिखलाती है ।
जब जब जलती है दुसरो के काम आती है चाहे फिर वो उसे जलाने वाला क्यु ना हो,
मानो जैसे वो प्यार में निस्वार्थ आशिकी बेवफा को चाहती हो ।
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'शौक़' तो सबको है,
इन नजरों को पढ़ने का !
मगर..
'हुनर' सिर्फ उनमें है,
इन आंखों की नमी को महसूस करने का !
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याद है मुझे शाम होते ही लालटेन जलाना
संध्या पूजन के बाद लौ को मद्धिम कर देना
सर्दियों में उसकी हल्की ताप का आनंद लेना
केरोसिन के महक के साथ वो दिन बिताना-
अंधेरे से थी घनिष्ठता हमारी,
उजियारे से बैर न था,
कुछ चिराग आज भी थे सीने में,
लालटेन जलाकर उन्हें भी दफ्न किया ।-
भागमभाग बढ़ी जीवन की, समय पुराना भूल गए,
इनवर्टर के युग में तुम, लालटेन जलाना भूल गए ।
ज्ञान कसौटी परे रखकर, बचपन तुम्हारा याद करो,
धीमी-धीमी रौशनी का तुम, वो जमाना भूल गए ।-
दियासलाई
माँगते थे बाबा
जब जलाते थे
अपनी लालटेन,
रात के अंधेरे में
जुगनूँ सी चमकती
हिलती डुलती
लालटेन
और मैं घटा बढ़ा
दिया करता था
उसकी लौ
खीज जाते थे
मेरी शैतानियों से
अक्सर,
उन्हें बहुत प्यारी थी
अपनी लालटेन-