चाहत है मेरी, जो कभी रूठो तुम मुझसे, और मैं मनालूं तुझे....
जो कभी डर जाओ तुम, तो अपने आघोष में कहीं, मैं छुपालूं तुझे......-
रूठो बेशक अपनों से,
पर मनाने पर मान जाओ,
अपने तो आखिर अपने हैं,
बात ये तुम जान जाओ,
होती गलती गलती से,
गलती ना की हो किसी ने कभी,
सामने एसा इंसान लाओ....
84 साल के गुलजार जी को 2004 में
भारत के सरवोच्च सम्मान पद्म भूषण से
नवाजा जा चुका है, 2009 में उन्हें 'स्लम-
डोग मिलेनियर' के गाने "जय हो" के लिये
सर्वश्रेष्ठ गीत का आस्कर अवार्ड मिला, इसी
गाने के लिये उन्हें "ग्रैमी अवार्ड" से भी नवाजा
जा चुका है,-
मैं नित रूठी रही
तुम मनाते रहे..!
श्याम..रूठो
तुम्हे मैं मनाऊँगी आज.!
तेरी राधा को पता
तू है नटखट बड़ा
मनाने में लगता है
मजा है बड़ा.!
श्याम..रूठो
राधा मनायेगी आज.!-
तुम बार बार रूठो फिर भी,
हर बार तुम्हे मना लूंगा...!
खुद मिटकर बारंबार स्वतंत्र,
अस्तित्व तेरा बना दूँगा..!
तुम क्यो उलझे जाते हो,
दुनिया की झूठी बातों में,
मुदो अपनी आंख सुनो,
दे दो हाथों को हाथों में..
सिद्धार्थ मिश्र-
तुम रूठो सौ दफा हम सौ दफा तुम्हे मनाएंगे.. मगर..
याद रखना ना मानेगे कभी जो एक दफा हम रुठ जायेंगे..-
माधव..
क्यों हम से इतने रूठे रूठे से हो,
इक़ बार आ कर तो बता दो कैसे मनाऊँ,
आखिर बात क्या है जरा बतावो मनमोहन,
हे गोविंद..
बस इक़ बार बता कर फिर चले जाना,
हम आपको ना रोकेंगे मनमीत,
मगर ऐसे ना रूठो श्याम,
दो लफ्ज़ गुस्से के दिखा,
हम से झगड़ा करो ना सरकार,
दिल को सुकूँ हमारे आ जायेगा माधव,
आप का भी गुस्सा शांत फिर हो जाएगा,
ऐसे तो ना रूठो मेरे मनमीत सरकार,
देखो जान हमारी निकल जायेगा,
थोड़ा तो तरस हम पर खा चित्तधरो,
आप बिन कौन है हमारा साँवरे सरकार..✍🏼🐦-
रूठो मत अब मान भी जाओ
मेरी प्यारी बिटिया रानी
फूलों जैसी हँसी तुम्हारी,
कुप्पे जैसे फूले गाल
तुम हँसती तो झरते फूल,
तुम रूठी तो हुए उदास
सारे फूल गये हैं मुरझा,
घर भर में चुप्पी है छाई
मेरी सखी सहेली न्यारी
प्यारी सी गुड़िया तू मेरी
हुई उदास किसलिए
मुझे बता तो दूर करूँ मैं
हर दुख तेरा मैं हर लूँगी,
शिकन न तुझ पर आने दूँगी
सखी, सहेली, मैं रक्षक हूँ,
माँ मैं तेरी मैं संरक्षक हूँ
मेरी बिटिया रहे उदास,
नहीं मुझे है ये बर्दाश्त
रूठो मत अब मान भी जाओ,
थोड़ा हँस दो, थोड़ा मुस्कराओ ।
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बहुत दिनों बाद तुम्हारा लिखा
खत मिला जिसमे तुमने मेरी
तारीफ के दो शब्द लिखे थे...
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Caption...
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दूर क्षितिज पर चांद सितारे,रंगत अपनी बिखेरे हैं।
तू ही तो है चांद मेरी, पर क्यों मुझसे मुंह फेरे है।।-