अपने इशारों पर चले वो जिंदगी कहां,
ख्वाहिशें कहां और चलते कदम कहां!-
है कौन.., जो जाता थक नहीं
जीवन इक तपोवन से पृथक नहीं,
जब तक आशा है.. मन "राही"
तेरे प्रयास जाएंगे व्यर्थ नहीं,
जीवन तो युद्ध है.. कर्मों का
छुटे ना सारथी.. रथ कहीं,
उस पार इस दुःख की सराय से
जाता तो होगा.. कोई पथ कहीं,
देखना निराशा का यह निर्मम साया
साथ जाएगा.. तेरे दूर तक नहीं,
तू शज़र सा तूफानों से लड़ मनवा
बेलों सा यूँ पग-पग..लचक नहीं,
यह मुस्कुराहटें चाहे क्षीण सही
है ख़्वाइशों पे.. किसका हक़ नहीं,
जब पत्थर में रब पूजा है
फिऱ दुआओं पे कर यूँ..शक़ नहीं..!-
अनजानी राहों का सफ़र मुश्किल लगता है
राही जमाने के रंगों से बे-खबर लगता है
सिमटी हो जिसकी सोच एक दायरे तक ही
उस शख्स को मस्वरा कँहा अच्छा लगता है
रोशन होते हैं कुछ जो शख्सियत से अपनी
उनको किसी परेशानी से कब ड़र लगता है
इश्क के अज़ाबों से तो सब वाकिफ़ हैं यँहा
इश्क-ए-जुनून महबूब को वो सुहाना लगता है
बादलों से बरसती हैं बारिश जब भी धरा पर
दर्द बयाँ करने का बादलों का बहाना लगता है
गुजरे लम्हो की खनक जब गूँजती है कानों में
अक्सर उन्हे महसूस करनें में जमाना लगता है
रिश्तों में दिवारे ऊँची हैं 'रूचि' आजकल
संजोना इनको ये भी हुनर पुराना लगता है-
लोग मुझे मिलते गये और फ़िर बिछड़ते गये
ज़िन्दा हूँ इसी को ख़ुदा का करम लिखता हूँ
मेरा सपना है वो और मेरी मंज़िल भी वही है
रहगुज़र के पत्थर को भी अब नरम लिखता हूँ
दिल के टुकड़ों की बात क्या करनी "आरिफ़"
मैं दर्द को ही अब सिर्फ़ इक वहम लिखता हूँ
"कोरा काग़ज़" भर लिया है अपने गुनाहों से
हर गुनाह को बस अपना अहम लिखता हूँ-
खाली पड़ी बोतलें कहानियां सुना रही
ऑंखें देख उनकी खुद शराब झूम जा रही-
जब हमारी मंजिल अपनी है
हमारे सपने अपने हैं
तो चलना भी हमहीं को है,
चाहे काटें हो या कलियाँ
हो चाहे कितनी भी मुश्किल गलियाँ
न रुकना है, न झुकना है।
कैसा भी हो रास्ता राही
सपनों की मंजिल पाने के लिए
हर मुश्किल से गुजरना है।।।।।-
क्या होता अगर ठहर जाते
आते जाते मौसम हैं सुनाते
सुख दुख तो हैं किरायेदार
नहीं अपना कहीं घर बसाते
खारे हो जाते सब झरने भी
अगर चलने से वो कतराते
कौन क्या कहेगा मत सोचो
खुद लिखो अपने बही खाते
रोड़े अटकाते पहले पहल सब
बाद में खुद तारूफ़ हैं करवाते-
तू राहों मे बढता चल ।
नये आयाम तू गढता चल ।
लकीरें जो हैं किस्मत की,
उनको शिद्दत से पढ़ता चल ।
मेघ हो जैंसे सावन के,
ऐसे धरा पे उमडता चल ।
हर इक डोर सफलता की,
मजबूती से तू पकडता चल ।-
Kaisa bhi rasta ho rahi,
Chod ke sabko peche jeet le tu sapno ko mahi,
Chalta ja tu kar har dal dal ko paar ,
Kabhi na kabhi khaega tu bhi maar,
Par soch ke yhi har baar,
Dhairy se nikal ja bina mane haar,
Phir kar de dushmano ke soch pe ek vaar,
Karle le khushiyon ko chaar,
Dekh phir uss chaand ke pass,
Kya usne choda upne daag ko chamakne ke baad,
Kyuki woh hai uska kuch khaas,
Isi tarah tu bhi rakh apne jaro ko yaad,
Phir kharab samay mein bhoolna naahi,
Kaisa bhi rasta ho rahi,
Chod ke unko peche jeet le tu sapno ko mahi,
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