Dev Kukreti  
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Joined 23 July 2019


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Joined 23 July 2019
22 JUN 2022 AT 21:25

अर्थ सा हूँ भाव इक हूँ,
प्रेम की संहिता पे बसता अस्मिता का गाँव इक हूँ।
कर्म सा हूँ निर्वाह इक हूँ,
समुद्र की लहरों पे चलता काठ की मै नाव इक हूँ।
दर्द सा हूँ सद्भाव इक हूँ,
धूप की तपती मे रहता वृक्ष की मै छाँव इक हूँ।
तप्त सा हूँ प्रकाश इक हूँ,
तेज हूँ मै सूर्य का सा लकड़ियों की आग इक हूँ।
पवन सा हूँ तूफान इक हूँ,
मृत मरुस्थल मे हूँ उगता वृक्ष का मै प्राण इक हूँ।
नीर सा हूँ धीर इक हूँ,
प्रभु राम के धनुश पे तनता मर्यादा का तीर इक हूँ।
गमन सा हूँ वंश इक हूँ,
परमात्मा की उर्जा से चलता मात्र मै तो अंश इक हूँ।
अक्ष सा हूँ प्रतिबिम्ब इक हूँ,
नव फलक पर रोज उगता सूर्य सा मै डिंब इक हूँ।

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6 MAY 2022 AT 20:38

तेरे पैरों का काला धागा बना ले मुझे,
दिल मे ना सही तेरे पास तो रहूँगा।

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23 JAN 2022 AT 14:29

मै तुम्हारा राम बनूँगा, तुम भी मेरी सीता बनना ।
अँधियारे मे जो राह दिखाए, ऐंसी भगवद्गीता बनना।

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24 NOV 2021 AT 11:51

मौन बैठे थे क्रूर सभी जब हरण हुआ माँ सीता का,
खुद मदिरा मे लीन हुए वो पाठ पढाएं गीता का।

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29 MAR 2021 AT 20:25

तू गर चले जो राहो़ं में तो तेरे संग हो जाऊं,
अबकी होली तेरे गालों पे जो बिखरे वो रंग हो जाऊं।
❣️

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16 MAR 2021 AT 21:00

खो कर खुद को उसने क्या पाया,
इश्क़ के रंग मे कुछ दिन इतराया ।
रखा समझ कर जिसको अपना,
उसने फिर इक दिन किया पराया।

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9 FEB 2021 AT 20:29

हाल कुछ ऐंसा है मेरा,
सब दर्द भुला कर बैठा हूँ।
देह जगाकर आत्मा को अपनी,
चैन की नींद सुला कर बैठा हूँ।

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6 FEB 2021 AT 20:19

हमसे रब है रब से हम हैं,
फिर काहे का तुझको गम है।
जो चलती रहे वो जिन्दगी,
गर रुक जाए तो आँखें नम हैं।

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12 JAN 2021 AT 19:24

प्यार मनुष्यों और जीवों में इस कदर बांटा हमने
अब सब जगह खबर है वहाँ आशियाना मिलता है।

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8 JAN 2021 AT 22:30

डूबना भी जरूरी होता है सपनों की कश्ती का,
गर दरिया भी ख़्वाबों का हो।

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