कविता वह सुरंग है जिसमे से गुजर कर मानव एक संसार को छोड़कर दूसरे संसार में चला जाता है।
~ दिनकर जी ✍️
हे शब्दों के सूरज आपको शत शत नमन 🙏💐-
"कर्मों का मर्म और साक्षी भाव"
भौतिक में अक्षुण्ण शून्य जहाँ
रसायन में पारा वो गया कहा,
न हाथ किसी के बंधन में
जर क्षीण हुआ औ उद्धार वहाँ।।
जब समर भेरी का बिगुल बजा
कर्ता भोक्ता बन अभिमान तजा,
हथियार वार वहां निष्काम हुए
जो संमुख समता का मौन धरा।।
अब करना तुम्हें जलधाम पार
स्व कर्मों की राशि अनंत अपार,
प्रमुदित निर्भय बन सहन करो
तो सहज करे मुक्ति स्वीकार।।
25.9.2020
(अनुशीर्षक में पढ़ें)
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इश्क
हे मन्नत के धागो सा,
हे बेहतरीन जरीया तुझको पाने का।
हे मांगा तुमको,दुआओ में साँसो सा,
हूँ रातो मैं जागा सा,
हूँ तुम बिन दिन के उजालो में, कोना मैं अंधियारो का।
हूँ सड़को पर फिरता, मैं पागल आवारा सा,
हूँ अधूरी ख्वाहिशो सा,
हाँ है दर्द तुझे भी समय के वार का।
हाँ गुजरा वक्त तेरा भी तकलीफो की मार सा,
हाँ मिलता है मुश्किल से, दोबारा मौका प्यारा का,
हे पवित्र यह गंगा कि धार सा,
तुम बिन मैं प्राणप्रिये, मरघट पर हूँ कंकालो सा।-
झर गई पूंछ, रोमांतर झरे,
पशुता का झरना बाकी है,
बाहर- बाहर तन संवर चुका.
मन अभी संवारना बाकी है।
(रामधारी सिंह दिनकर)
(रश्मिरथी)-
स्व का स्व से तर्पण होगा
हे! पार्थ लगता है फिर से रण होगा
फिर से कोई व्यूह होगा
लगता है फिर से कोई पार्थ, कर्ण होगा
क्षण क्षण है परिवर्तन का
परिवर्तन में ही साक्ष्य का अर्पण होगा
बजा दुदुहि की समर शेष है
वीररक्त से परिपूर्ण अब कण कण होगा
राख नही अब सिंहनाद होगा
मस्तक नही आन जीवित क्षण क्षण होगा
अस्ताचल को थाम चला दिवाकर
अब कहाँ कोई तुम सा "दिनकर" होगा-
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं धरा ठिठुरती है सर्दी से आकाश में कोहरा गहरा है बाग़ बाज़ारों की सरहद पर सर्द हवा का पहरा है सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं हर कोई है घर में दुबका हुआ नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो निज मन में तनिक विचार करो नये साल नया कुछ हो तो सही क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही उल्लास मंद है जन -मन का आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं ये धुंध कुहासा छंटने दो रातों का राज्य सिमटने दो प्रकृति का रूप निखरने दो फागुन का रंग बिखरने दो प्रकृति दुल्हन का रूप धार जब स्नेह – सुधा बरसायेगी शस्य – श्यामला धरती माता घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि नव वर्ष मनाया जायेगा आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर जय गान सुनाया जायेगा युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अनमोल विरासत के धनिकों को चाहिये कोई उधार नहीं ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं
-राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर
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व्यस्तता की अवस्था में आज भी घुल न जाना।
आज 23 सिंतबर है दिनकर को भूल न जाना।।-
वैराग्य ज्ञान व पाखंड
क्या कहा सब बंधु हैं तो बंधुओं में युद्ध क्यों
वो भले शोणित हो पीते हों भला हम क्रुद्ध क्यों
मैं कहूँ क्यों क्रुद्ध है मन उन के अत्याचार से
क्यों नही हूं जीत सकता प्रेम के हथियार से
क्या नही थी कौरवों और पांडवों में बंधुता
क्या नही वह कंश भी कान्हा का मातुल सत्य था
हर घड़ी हमको ये सिखलाया है उनके कर्म ने
है नही अंतर कोई कुरुक्षेत्र या फिर धर्म मे
हर तरह की नीतियां जब शांति ला पाई नही
ब्रह्म को फिर स्वयं यहां काल बन आना पड़ा
वैराग्य का वह ज्ञान जो कर्मों से यूँ वंचित करे
परमार्थ तेरा गर यहां असुरों को हीं सिंचित करे
ज्ञान वह फिर है नही पाखंड का भण्डार है
कर्मयोनि में भी हो वह जीव जग का भार है।-
खेती-किसानी तो सबने की हल-बैल से खेत जुताई की
और तूने पाटा लगा दिया हे दिनकर ऐसी काव्यायी की-