एक दोहा नेताओं के लिए विशेष:
काल कोरोना का विकट, राजनीति तजो तात
दुखियारी प्रजा देख रही, मारेगी कल लात-
लगता है फायदे का सौदा है लहू का व्यापार
जब भी बहता है आसमां छूता है राजनीति का बाजार-
'अंकुश' दिल बड़ा होना चाहिए मगर समुन्दर नहीं,
राजनीती करनी है तो करो मगर घर के अंदर नहीं।
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बहुत दूर मत जाना मुझे खोजने को
आसानी से ठिठुरता मिल जाऊंगा मैं
सिली नम बोरियों के गठ्ठर में यही , हाँ सुनो
सड़क के किनारे सोया हुआ वही भविष्य हूँ मैं
हर छमाही चमका कर जिसे लालकिले पर फहराते हो
हाँ मैं गरीबी अशिक्षा की चादर में लिपटा
राजनेताओं की हाथ की वही कठपुतली हूँ ,
जिसे वोट बक्से में कोहिनूर सा सहेजते हो तुम
फिर से 5 साल बाद वादों की भठ्ठी में भुनाने की ख़ातिर
कुछ खास अंतर नही है मुझमे और
उस बरसाती कीड़े में, जो दूधिया बत्ती की
ओर भागता है जीवन की लालसा में और तड़पकर
जान दे देता है , मुझे हरी और गुलाबी रौशनी में
उलझाकर बुलाते हो हाँ मैं वही जरूरतमंद साँस लेता
तुम्हारे सभी बेमानी वादों का टूटता एकमुश्त उपक्रम हूँ
कहीं सूखे की तड़प हूँ मैं
तो कहीं बाढ़ की भभकती महामारी हूँ मैं
कहीं फंदे पर झूलता मौसम की लाचारी हूँ मैं
बहुत मत सोचो मैं बेबसी में टूट जाता हूँ अक्सर
सही समझा इंसानियत नाम की वही पुरानी बीमारी हूँ मैं
गंगा की धरती है बाबू ! हर पाप धुल जायेगा
कहीं आधी रात की निर्भया हूँ मैं तो सुनो कहीं
दिल्ली का सौदागर निठारी हूँ मैं
कहीं बेमौत मरता मिल जाऊंगा मैं
सरकारी वार्ड की खास तीमारदारी हूँ मैं ।।
मैं हल्दी और मेहँदी की मिली जुली रंगत हूँ
मैं शगुन की चुनरी हूँ और शगुन का "कफन" भी हूँ
हर तिमाही चक्रवृद्धि सी बढ़ती बेटी हूँ मैं हाँ
मैं उस महाजन की कभी न भरने वाली उधारी हूँ-
सर पर टोपी , हाथ में गम
आया जब चुनाव का मौसम
एसी गाड़ी बोली पो पो पो पो
आओ नामुरादों वोट दो दो दो
रहे हमेशा टेढ़े हम कुत्ते की दुम
आओ मुझपर भरोसा कर लो तुम
कैसे भूखे नंगे जीना है सीखो
अपनी गर्दन कुल्हाड़ी पर रखो
दो रंग बड़ा भाये हमको
हरा केसरिया चाँद सूरज नज़र आये हमको
दंगे की आग पर बनी रोटी
सेहतमंद बुझाए हमको
तुम जलते हो जलो हमे क्या
कोष हमारा प्रियतमा नजर आये हमको
वोट दो बाजार गरम है
100 क्या बोलो 200 अरे 500 क्या कम है
पांच साल का तुम्हारा कारावास
हमारा तो बस लंदन पेरिस का आवास
फिर आएगा मौसम वादों का उपहारों का
देंगे फिर से तुमको चारा आरती अज़ानों का
हमारा क्या , हम गरीब आदमी, सेवक हम
सर पर टोपी , हाथ में गम-
इतने भी पाप न कर आदमजात
माफ़ी भी हो जाए शर्मिंदा
तेरे संग तेरे अपने भी है
उनको तो रहने दो जिन्दा-
ना जाने क्यों लोग कहते हैं,
इश्क मे कभी राजनीती नही होती,
कभी पुछो मेरी बेसुध आँखों से,
जो पक्षपात कर,रातों मे नही सोती।
इनको तुम्हारे ख्यालो मे जागना है,
बेवजह तुम्हे चुपके से ताँकना है,
मुझे तो मानो,विपक्षी बना बैठे हैं,
इशारों मे सारा समीकरण बना बैठे हैं,
कई दफा रोकना चाहा,तुम्हारी ओर आने से,
पर कमबख्त तुमको सरकार बना बैठे हैं।-
चुप नहीं रहना
कौन बोला यहाँ
कहाँ से आवाज़ आयी
किसने इतनी जहमत उठायी
अरे सब चुप ही तो हो
देखो ना तभी तो
जो चुपचाप पिस रहे
राजनीति की चक्की में
नहीं विकल्प कोई बचा
बेचारे सब करें क्या
शायद तभी तो चुपचाप
भेड़चाल चल रहे हैं सब
आओ अब आवाज़ उठाओ
नेताओं को आइना दिखाओ
भेड़िए लूटने बैठे हैं यहां
जागो चुपचाप नहीं रहना-