साथ चहकना चाहता था
पर अब मैं तन्हा रो रहा हूँ
पाप इतने कर चूका हूँ
पुण्य भी सारे धो रहा हूँ
मरने की अदाकारी कर के
मैं ख़ामोशी से सो रहा हूँ
दुःख इतना झेला है कि
अब मैं पत्थर हो रहा हूँ
जीते जी मेरे यारों देखो
लाश अपनी ढो रहा हूँ
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ख़ुद को ख़रीद लाया ख़ुद ही को बेच कर
~ अंकुश तिवारी
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माँग के सिन्दूर से मोहब्बत के फ़रिश्ते बे-तहाशा डर रहे हैं
वो दुनिया भर की झूठी क़समें कच्चे वादे करते फिर रहे हैं
बार बार बे-वजह दिल दुखाना फिर नए नए बहाने बनाना
ख़ून के आँसू रुला के हमदर्द बनने का दिखावा कर रहे हैं
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बे-वजह ख़ामोश रह कर वो हम से दूरियाँ बढ़ा रहे हैं
हम भी नवाबी में एक बे-वफ़ा का किरदार निभा रहे हैं
इस उम्मीद में कि आकर पीछे से कस के लिपट जाये
मुस्कुराते हुए हम भी धीरे धीरे पलट कर घर जा रहे हैं
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सुकूँ से सो न पाया दिल को ज़रा क़रार न आया
लाख बुलाने पर भी जब मिलने मेरा यार न आया
पास जब वो आया बिजलियाँ तो गड़गड़ायीं मगर
बहुत चाहने पर भी मुझे अब उस पे प्यार न आया
उसकी ख़ुश्बू मेरे ज़हन में बेतहाशा रक़्स करती रही
मेरे लबों पर नाम उसके इश्क़ का इज़हार न आया
आया भी ठिठक ठिठक के बचा-खुचा एक आँसू
बिछड़ते वक़्त रोना भी आया तो बेशुमार न आया
मन्नतें माँगो दुआएँ पढ़ो मंदिर में पड़े रहो पर किसी
आशिक़ को बचाने कभी कोई परवरदिगार न आया-
कई लोग मिले हों चाहे इश्क़ हजारों मर्तबा हुआ हो
बस सनद रहे कि मंज़िल और रस्ता हर बार नया है
तरीक़े बदल जाएँ चाहे पर पहली मोहब्बत जैसा हो
वही ख़ुश्बू वही रंगत वही मदहोशी वही ज़ायका हो
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मुझ से मुँह मोड़ कर चला गया है जो शख़्स उससे अब नहीं मिलूँगा
एक बार उसके सामने बे-इंतहा रोया हूँ अब उसे दोबारा नहीं दिखूँगा
उसकी साँसों की ख़ुश्बू शर्ट पर हाथ की छुअन हथेली पर रह गई है
अब जिस से भी आख़री दफ़ा मिलूँगा उसके गले कतई नहीं लगूँगा
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अश्क़ आँखों में रहते हैं छलकने के लिए
मुझे मिलना था तुझ से भटकने के लिए
इश्क़ की चौखट पर खड़ा रहा पड़ा रहा
तेरी ख़ुश्बू बटोरता रहा बिछड़ने के लिए
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#MyDearDreamGirl
लबों से निकलता हुआ प्रत्येक हर्फ़ हकलाएगा बे-इंतहा शर्माएगा
ख़्वाबों में बसा हुआ महबूब जब भी हक़ीक़त में मेरे सामने आएगा
हाथ पाँव ठंडे पड़ जाएँगे मेरी काली खाली आँखें चुँधिया जाएँगी
उसके गालों का स्पर्श जब मेरी उँगलियों द्वारा रूह में उत्तर जाएगा
ख़्वाबों में बसा हुआ महबूब जब भी हक़ीक़त में मेरे सामने आएगा
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दरवाज़े पर तुम्हारी दस्तक की आवाज़ चिड़िया ने गुनगुनायी है
मैं बख़ूबी जनता हूँ तुम नहीं तुम्हारी याद टहलते टहलते आयी है
बावजूद इसके देहलीज़ पर उम्मीद आँखों में लिए खड़ा रहता हूँ
लौट कर आने पर मेरे कमरे में बस उदासी की महफ़िल छायी है
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तुम प्यार करो गर मुझ से कभी तो हाथ मेरा कस के थामों
फिर आँधी आये या आग लगे तुम साथ मेरा न तब छोडो
विश्वास करो इज़हार करो हो सके तो थोड़ा इंतज़ार करो
मुझे अकेला देख कर तुम सब भूल कर अपनी बाँहों में भरो
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