जब माँ उसे कर देगी त्याग
जात धर्म हो जाए अभाग,
जो अकुलाए उस कर्ण को
उसके सीने स्वर्ण को
न मिले आदर न वास,
कर्ण किससे रखे आस?
सूत पुत्र होने पर जो
वो हास्य, घृणा का पात्र हो
तो दुर्योधन आएँगे
कर्ण कौरव होते जाएंगे।
कर्ण कौरव होते जाएंगे।
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कविता वह सुरंग है जिसमे से गुजर कर मानव एक संसार को छोड़कर दूसरे संसार में चला जाता है।
~ दिनकर जी ✍️
हे शब्दों के सूरज आपको शत शत नमन 🙏💐-
झर गई पूंछ, रोमांतर झरे,
पशुता का झरना बाकी है,
बाहर- बाहर तन संवर चुका.
मन अभी संवारना बाकी है।
(रामधारी सिंह दिनकर)
(रश्मिरथी)-
मुझ से मनुष्य जो होते हैं
भावों के पीछे रहते है
नहीं देते कभी उन्हें बिखरा
खामोशी से सहेज लेते हैं
होकर भावों के अधीन
बनता है मन पराधीन
कैसे होगा फिर कोई सुख
जब खुद को ही खो देते हैं
उड़ते है हर पल यादों में
माया उन्हें जकड़ती है
तन को कर लेते है दूर
पर मन उड़ान भर लेती है!
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बात जब खुद पर आई कर्ण देने लगा धर्म की दुहाई,शायद भुल गया था वीर अभिमन्यु की बारी ...
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"धँस जाये वह देश अतल में,गुण की जहाँ नहीं पहचान
जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान"
:-रामधारी दिनकर (रश्मिरथी)-
THE GREAT RASHMIRATHI
लेकिन, नौका तट छोड़ चली,
कुछ पता नहीं, किस ओर चली।
यह बीच नदी की धारा है,
सूझता न कूल-किनारा है।
ले लील भले यह धार मुझे,
लौटना नहीं स्वीकार मुझे।-
मृतको से पटी हुई भू है।
पहचान, कहाँ इसमें तू है।।
-रामधारी सिंह दिनकर
( रश्मिरथी )-
रश्मिरथी से:
दान जगत का प्रकृत धर्म है, मनुज व्यर्थ डरता है,
एक रोज तो हमें स्वयं सब कुछ देना पड़ता है ।
बचते वही समय पर जो सर्वस्व दान करते हैं,
ऋतु का ज्ञान नहीं जिनको वे देकर भी मरते हैं ।
श्री रामधारी सिंह दिनकर--